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________________ ज्ञान अध्ययन ७४३ १०.आणुपुव्वीदव्वाई दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणाई, ताई चेव पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणाई। से तं अणुगमे। से तंणेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुयी। - -अणु.सु.१५२-१५८ १५७. संगहणय सम्मय खेत्ताणुपुष्यी परूवणा प. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुब्बी? उ. जहेव दव्वाणुपुय्यी तहेव खेत्ताणुपुव्यी णेयव्या। १०.(उनसे) आनुपूर्वीद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं और वे ही प्रदेश की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। यह अनुगम है। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी है। यह क्षेत्रानुपूर्वी है। १५७. संग्रहनय सम्मत क्षेत्रानुपूर्वी की प्रलंपणा प्र. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है? उ. पूर्वोक्त संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की तरह इस क्षेत्रानुपूर्वी का भी स्वरूप जानना चाहिए। यह संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी है। यह अनोपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी है। प्र. औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है? उ. औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी ३. अनानुपूर्वी। से तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी। से तं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी। प. से किं तं ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी? उ. ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१.पुव्वाणुपुव्वी, २. पच्छाणुपुव्वी, ३.अणाणुपुव्वी। __ -अणु.सु.१५९-१६० १०. भावाणुपुवीप.. से किं तं भावाणुपुव्वी? उ. भावाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा १.पुव्वाणुपुव्वी,२. पच्छाणुपुब्बी, ३. अणाणुपुव्वी। प. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? उ. पुव्वाणुपुब्बी-१. उदइए, २. उवसमिए, ३. खइए, ४. खओवसमिए,५. पारिणामिए, ६. सन्निवाइए। से तं पुव्वाणुषुव्वी। प. से किं तं पच्छाणुपुव्वी? उ. पच्छाणुपुव्वी-सन्निवाइए जाव उदइए, १०. भावानुपूर्वी प्र. भावानुपूर्वी क्या है? उ. भावानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी। प्र. पूर्वानुपूर्वी क्या है? उ. १. औदयिकभाव, २. औपशमिकभाव, ३. क्षायिकभाव, ४ क्षायोपशमिकभाव, ५. पारिणामिकभाव, ६. सान्निपातिकभाव इस क्रम से भावों का कथन करना, यह पूर्वानुपूर्वी है। प्र. पश्चानुपूर्वी क्या है? उ. सान्निपातिकभाव से लेकर औदयिकभाव पर्यन्त भावों का विपरीत क्रम से कथन करना, यह पश्चानुपूर्वी है। प्र. अनानुपूर्वी क्या है? उ. एक से लेकर एकोत्तर वृद्धि द्वारा छह पर्यन्त की श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर प्राप्त राशि में से प्रथम और अन्तिम भंग को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी है, यह अनानुपूर्वी का स्वरूप है। यह भावानुपूर्वी का वर्णन है। १५८. उपक्रम अनुयोग में "नाम" द्वार के भेद-प्रभेव प्र. नाम का स्वरूप क्या है? उ. नाम के दस प्रकार कहे गए है, यथा से तं पच्छाणुपुव्वी। प. से किं तं अणाणुपुव्वी? उ. अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। सेतं अणाणुपुव्वी। से तं भावाणुपुवी। -अणु. सु. २०७ १५८. उवक्कम अणुओगे नाम दुवारस्स भेयप्पभेया प. से कि तणाम? उ. णामे दसविहे पण्णते,तं जहा १. (४) क्षेत्रानुपूर्थी (सु.१६१-१७९) का शेष वर्णन गणितानुयोग परिशिष्ट में देखें। (५) कालानुपूर्वी (सु. १८०-२०२)का वर्णन भी यहीं परिशिष्ट में देखें। (६) उत्कीर्तनानुपूर्वी (सु.२०३) का वर्णन धर्मकथानुयोग परिशिष्ट में देखें। (७) गणनानुपूर्वी (सु.२०४) का वर्णन भी गणितानुयोग परिशिष्ट में देखें। (८) संस्थानानुपूर्वी (सु.२०५) शरीर अध्ययन में देखें। (९) समाचारी आनुपूर्वी (सु.२०६) का वर्णन चरणानुयोग परिशिष्ट में देखें। २. भावानुपूर्वी का शेष वर्णन आगे नाम विवक्षा में देखें।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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