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________________ ज्ञान अध्ययन प. २. से किं तं णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ? उ. णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया १. अस्थि आणुपुब्बी, २. अस्थि अणाणुपुब्बी, ३. अस्थि अवत्तव्वए । एवं दव्याणुपुविगमेणं खेसाणुपुच्चीए वि ते चैव छब्बीस भंगा भाणियस्या सेतं गम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया । प. एयाए णं णेगम-पवहाराणं भंगसमुक्कित्तणाए किं पओयणं ? उ. एयाए णं णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया कज्जइ । प. ३. से किं तं णेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? उ. णेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया तिपएसोगाढे आणुपुव्वी, एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी, दुपएसोगाढे अवत्तव्वए, तिपएसोगाढाओ आणुपुव्वीओ, एगपएसोगाढाओ अणाणुपब्बीओ, दुपएसो गाढाई अवत्तव्यवाई अहवा तिपएसोगाढे य एगपएसोगाढे य आणुपुब्वी य अणाणुपुच्चीय, एवं तहा चैव दव्याणुपुविगमेणं छब्बीस भंगा भाणियव्या । सेतं गम-ववहाराणं भंगोवदंसणया । प. ४. से किं तं समोयारे ? समोयारे-गम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाई कहिं समोयरंति ? किं आणुपुच्चीदव्येहिं समोयरति ? अणाणुपुवीदयेहिं समोवरंति ? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति ? उ. आणुपुव्वदव्वाई आणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति, नो अणाणुपुव्वदव्वेहिं समोयरंति, नो अवतव्यदव्येहिं समोयरति । एवं तिणि वि सट्ठाणे समोयरति ति भाणियव्यं । से तं समोयारे। प. ५. से किं तं अणुगमे ? उ. अणुगमे णवविहे पण्णत्ते तं जहा " १. संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं, ३ च खेत्तं, ४. फुसणा य । ६. कालो य अंतरं, ७. भाग, ८. भाव, ९. अप्पाबहुं चेव । प. १. णेगम - ववहाराणं खेत्ताणुपुव्वीदव्वाई किं अस्थि णत्थि ? उ. णियमा अत्थि । ७४१ प्र. २. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भगसमुत्कीर्तनता क्या है? 3. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप इस प्रकार है १. आनुपूर्वी है २ अनानुपूर्वी है, ३. अवक्तव्य है। यहां द्रव्यानुपूर्वी की तरह ही क्षेत्रानुपूर्वी के भी वही छब्बीस भंग जानने चाहिए। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप है। प्र. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है ? उ. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता द्वारा नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता की जाती है। प्र. ३. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता इस प्रकार है तीन आकाशप्रदेशावगाढ स्कन्ध आनुपूर्वी है, एक आकाशप्रदेशावगाढ] (परमाणुसंघात) अनानुपूर्वी है तथा दो आकाशप्रदेशावगाढ] ( स्कन्ध क्षेत्र की अपेक्षा) अवक्तव्य है। तीन आकाशप्रदेशावगाढ अनेक स्कन्ध आनुपूर्वियां हैं, एक आकाशप्रदेशावगाढ अनेक परमाणुसंघात अनानुपूर्वियां हैं तथा द्विआकाशप्रदेशावगाढ] (डिप्रदेश स्कन्ध आदि अनेक द्रव्यस्कन्ध) अवक्तव्य हैं। अथवा त्रिप्रदेशावगाढ स्कन्ध और एक प्रदेशावगाढ स्कन्ध एक आनुपूर्वी और एक अनानुपूर्वी है। इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की तरह छब्बीस भंग यहां भी जानने चाहिए। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप है। प्र. ४. समवतार क्या है ? नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों का समावेश कहां होता है ? क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में, अनानुपूर्वी द्रव्यों में अवक्तव्य द्रव्यों में समावेश होता है ? उ. आनुपूर्वी द्रव्य आनुपूर्वी द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं, किन्तु अनानुपूर्वी द्रव्यों में, अवक्तव्य द्रव्यों में समाविष्ट नहीं होते हैं। इस प्रकार तीनों स्व-स्व स्थान में ही समाविष्ट होते हैं कहना चाहिए? यह समवतार का स्वरूप है। प्र. ५. अनुगम क्या है ? उ. अनुगम नौ प्रकार के कहे गये है, यथा १. सत्पदप्ररूपणता, २ द्रव्यप्रमाण, ३ क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अन्तर, ७. भाग, ८. भाव, ९. • अल्पबहुत्व । प्र. 9. नैगम-व्यवहारनवसम्मत क्षेत्रानुपूर्वीद्रव्य है या नहीं ? उ. नियमतः है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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