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________________ ७४० द्रव्यानुयोग-(१) ( ७४० उ. अणाणुपुदी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगवाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। उ. अनानुपूर्वी का स्वरूप यह है-एक से प्रारम्भ कर एक-एक की वृद्धि करके अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त की श्रेणी को परस्पर गुणित करके उसमें से आदि और अन्त रूप दो भंगों को कम करने पर प्राप्त राशि अनानुपूर्वी कहलाती है। यह अनानुपूर्वी है। यह औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी है। यह ज्ञायक शरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी है। यह नो आगम द्रव्यानुपूर्वी है। यह द्रव्यानुपूर्वी का कथन पूर्ण हुआ। १५५. क्षेत्रानुपूर्वी प्र. ४. क्षेत्रानुपूर्वी क्या है? उ. क्षेत्रानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है, यथा १.औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी, २. अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी। इन दो भेदों में से औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी स्थाप्य है। अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है, यथा १.नैगम-व्यवहारनयसम्मत, २. संग्रहनयसम्मत। से तं अणाणुपुव्वी। से तं ओवणिहिया दव्वाणुपुवी। से तं जाणग-सरीर भविय सरीर वइरित्ता दव्वाणुपुव्वी। सेतं नो आगमओ दव्वाणुपुव्वी।से तंदव्वाणुपुवी। -अणु.सु.१३१-१३८ १५५. खेत्ताणुपुब्बी प. ४.से किं तं खेत्ताणुपुव्वी? उ. खेत्ताणुपुष्वी दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.ओवणिहिया य,२.अणोवणिहिया य। तत्थ णं.जा सा ओवणिहिया सा ठप्पा। तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१.णेगम-ववहाराणं,२.संगहस्सय। -अणु.सु.१३९-१४१ १५६. णेगम-ववहारणयसम्मय अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वीप. से किं तं णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी? उ. णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा१.अट्ठपयपरूवणया, २.भंगसमुक्कित्तणया, ३.भंगोवदंसणया, ४.समोयारे,५.अणुगमे। प. १.से किं तंणेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया? उ. णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया-तिपएसोगाढे आणुपुव्वी जाव दसपएसोगाढे आणुपुव्वी, संखेज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी, असंखेज्जपएसोगाढे आणुपुव्वी, एगपएसोगाढे अणाणुपुव्वी, दुपएसोगाढे अवत्तव्यए, तिपएसोगाढा आणुपुव्वीओ जाव दसपएसोगाढा आणुपुव्वीओ, संखेज्जपएसोगाढा आणुपुव्वीओ, असंखेज्जपएसोगाढा आणुपुव्वीओ, १५६. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है? . उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी पाँच प्रकार की कही गई है, यथा१.अर्थपदप्ररूपणता, २. भंगसमुत्कीर्तनता, ३. भंगोपदर्शनता, ४. समवतार, ५. अनुगम। प्र. १. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार है-तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दस प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है, संख्यात प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है, असंख्यात प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है। आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ द्रव्य अनानुपूर्वी है, दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्य अवक्तव्य है, तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ अनेक द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां हैं यावत् दसप्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां हैं, संख्यातप्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां हैं, असंख्यात प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियां हैं, एक प्रदेशावगाढ अनेक परमाणु पुद्गल द्रव्य अनानुपूर्वियां हैं, दो प्रदेशावगाढ अनेक द्रव्यस्कन्ध अवक्तव्य हैं, यह नंगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप है। प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है? उ. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता द्वारा नैगम व्यवहारनयसम्मत भंगों का कथन किया जाता है। एगपएसोगाढा अणाणुपुव्वीओ, दुपएसोगाढा अवत्तव्वगाई। से तंणेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया। प. एयाए ण णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयण? उ. एयाए णं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए णेगम ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया कीरइ।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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