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________________ ज्ञान अध्ययन ९. अप्पाबहु नत्थि । अणुग सेतं संगहस्स अणोवणिहिया दव्याणुपुव्वी । सेतं अणोयणिहिया दव्याणुपुब्वी । - अणु. सु. १२७-१३० १५४. ओवणिहिया दव्याणुपुब्बी प से किं तं ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी ? उ. ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा१. पुव्वाणुपुव्वी, २. पच्छाणुपुव्वी, ३. अणाणुपुव्वी य प. १. से किं तं पुव्वाणुपुब्बी ? उ. पुव्वाणुपुवी - १. धम्मत्थिकाए, २. अधम्मत्थिकाए, ३. आगासत्थिकाए, ४. जीवत्थिकाए, ५. पोग्गलत्थिकाए, ६. अद्धासमए । तंवाणु प. २. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? उ. पच्छाणुपुव्वी - १. अद्धासमए, २. पोग्गलत्थिकाए, ३. जीवत्थिकाए, ४. आगासत्थिकाए, ५. अधम्मत्थिकाए, ६. धम्मत्थिकाए । तं पच्छा प. ३. से किं तं अणाणुपुव्वी ? उ. अणाणुपुव्वी - एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए छगच्छ्गयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरू सेतं अणाणुपु । अहवा ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा १. पुव्वाणुपुव्वी, २, पच्छाणुपुव्वी, ३ . अणाणुपुवी । प. १. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? उ. पुव्वाणुपुवी - परमाणुपोग्गले दुपएसिए, तिपएसिए जाव दसपएसिए जाय असंखेज्जपएसिए, अणंतपएसिए । संखेज्जपएसिए, सेतं पुव्याणुपु प. २. से किं तं पच्छाणुपुब्बी ? उ. पच्छाणुपुवी - अणतपएसिए असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसिए जाव दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले । पच्छा प. ३. से किं तं अणाणुपुव्वी ? ७३९ ९. (राशिगत द्रव्यों में) अल्पबहुत्व नहीं है। यह अनुगम है। यह संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी है। यह अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी है। १५४. औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी प्र. औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या हैं? उ. औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. पूर्वानुपूर्वी (अनुक्रम), २. पश्चानुपूर्वी (विपरीतक्रम), ३. अनानुपूर्वी ( व्युत्क्रम) । प्र. १. पूर्वानुपूर्वी क्या है ? उ. पूर्वानुपूर्वी - १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. जीवास्तिकाय, ५. पुद्गलास्तिकाय, ६. अद्धाकाल । इस प्रकार (अनुक्रम से निक्षेप करना) पूर्वानुपूर्वी है। प्र. २. पश्चानुपूर्वी क्या है ? उ. पश्चानुपूर्वी - १. अद्धासमय, २. पुद्गल्ास्तिकाय, ३. जीवास्तिकाय, ४. आकाशास्तिकाय, ५. अधर्मास्तिकाय, ६. धर्मास्तिकाय । इस प्रकार (विलोम क्रम से निक्षेपण करना) पश्चानुपूर्वी है। प्र. ३. अनानुपूर्वी क्या है ? उ. अनानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है-एक से प्रारम्भ कर एक-एक की वृद्धि करने पर छह पर्यन्त स्थापित श्रेणी के अंकों को परस्पर गुणाकार करने से जो राशि आए, उसमें से आदि और अन्त के दो रूपों को कम करने पर अनानुपूर्वी हो जाती है। यह अनानुपूर्वी है। अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी. प्र. १. पूर्वानुपूर्वी क्या है ? उ. पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है - परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध (रूप क्रमात्मक गणना करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं ।) यह पूर्वानुपूर्वी है। प्र. २. पश्चानुपूर्वी क्या है ? उ. पश्चानुपूर्वी का स्वरूप यह है - अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध यावत् त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणुपुद्गल । यह पश्चानुपूर्वी है। प्र. ३. अनानुपूर्वी क्या है ?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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