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________________ ज्ञान अध्ययन १. ओहिनाणपच्चक्ख ३. केवलनाणपच्चक्संबी सु. ३-५ ८७. ओहिनाणस्स पचवणं प. से किं ओहिनाणपच्चक्खं ? उ. ओहिनाणपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं तं जहा P १. भवपच्चइयं च, दण्डं भवपच्चइयं तं जहा " , १. देवाणं च दोहं खओवसमियं तं जहा 7 १. मणुस्साणं च २. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं च । प. को हेऊ खओवसमियं ? १. आणुगामियं ३. वड्ढमाणर्य, ५. पडिवाइ २. मणपज्जवनाणपच्चक्ख, उ. खओवसमियं तयावरणिज्जाणं कम्माण उदिण्णाणं वएणं, अणुदिण्ण उवसमेण ओहिनाणं समुपज्जइ । २. खओवसमियं च । २ अहवा गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिनाण समुपज्जइ । तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं तं जहा १. पुरओ अंतगयं ३. पासओ अंतगयं 7 २. रइयाण स (१) आणुगामि ओहिनाणस्स परूवर्णप से किं तं आणुगामियं ओहिनाणं ? उ. आणुगामियं ओहिनाणं दुविहं पण्णत्त, तं जहा२. मझगये थ १. अंतगयं च, प. से किं तं अंतगयं ? उ. अंतगयं तिविहं पण्णत्तं तं जहा 1 १. पच्चक्खे नाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. केवलनाणे चेव, २. अणाणुगामियं ४. हीयमाणयं ६. अपडिवाइ 7 - नंदी. सु. ६-९ २. मग्गओ अंतगयं, प. १. से किं तं पुरओ अंतगयं ? उ पुरओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा, धुंडलियं या, अलायं वा मणि था, जो वा, पईवं या, पुरओ काउं पणोल्लेमाणे-पणोल्लेमाणे गच्छेज्जा। से तेणं जोइट्ठाणेणं पुरओ चेव पासइ । णो केवलनाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. ओहिनाणे चेव, २. मणपज्जवनाणे चेव, २. णो केवलनाणे चेव । -या. अ. २, उ. १, सु. ६० (२) - ठाणं. अ. २, उ. १, सु. ६० (१२) २. ३. १. अवधिज्ञान प्रत्यक्ष, २ मनः पर्यवज्ञान प्रत्यक्ष, ३. केवलज्ञान प्रत्यक्ष । ८७. अवधिज्ञान का प्ररूपण प्र. प्रत्यक्ष अवधिज्ञान क्या है ? उ. प्रत्यक्ष अवधिज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. भवप्रत्ययिक, २. क्षायोपशमिक । भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान दो को होता है, यथा१. देवों को, २. नारकों को। क्षायोपशमिक अवधिज्ञान दो को होता है, यथा१. मनुष्यों को, २. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों को। प्र. क्षायोपशमिक अवधिज्ञान इनको क्यों होता है? उ. जो कर्म अवधिज्ञान में बाधा उत्पन्न करने वाले हैं उनमें से उदय में आए हुए कर्मों का क्षय होने से तथा उदय में नहीं आए हुए कर्मों का उपशम होने से जो अवधिज्ञान उत्पन्न होता है, यह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान कहा जाता है। अथवा ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र रूप गुण सम्पन्न मुनि को जो अवधिज्ञान उत्पन्न होता है वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान कहा जाता है। वह (क्षायोपशमिक अवधिज्ञान) संक्षेप में छह प्रकार का कहा गया है, यथा १. आनुगामिक, ३. वर्द्धमान, ५. प्रतिपातिक, ६६७ २. अनानुगामिक, ४. हीयमान, ६. अप्रतिपातिक । (१) आनुगामिक अवधिज्ञान का प्ररूपण प्र. आनुगामिक अवधिज्ञान क्या है? उ. आनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा २. मध्यगत। १. पुरतः अन्तगत, ३. पार्श्वतः अन्तगत । १. अन्तगत, प्र. अन्तगत अवधिज्ञान क्या है ? उ. अन्तगत अवधिज्ञान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा२. मार्गतः अन्तगत, प्र. १. पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान क्या है ? उ. पुरतः अन्तगत-जैसे कोई व्यक्ति उल्का (अग्नि पिण्ड), घास का जलता हुआ पूला, अग्रभाग से जलता हुआ काष्ठ, नील-मणि, पात्र में रखी हुई प्रज्वलित ज्योति या दीपक को हाथ अथवा दण्डे से आगे करके चलता है और उक्त पदार्थों द्वारा हुए प्रकाश से मार्ग में पड़े हुए पदार्थों को देखता जाता है। सम. सु. १५३, (क) ठाणं. अ.२, उ. १, सु. ६०/ १३-१५ (ख) राय. सु. २४१ (ग) पण्ण प. ३३, सु. १९८२ ४. ठाणं. अ. ६ सु. ५२६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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