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________________ ६६८ एवामेव पुरओ अंतगएणं ओहिणाणेणं पुरओ चेव संखेज्जाई वा, असंखेज्जाइं वा जोयणाइं जाणइ पासइ । सेतं पुरओ अंतमयं । प. २. से किं तं मग्गओ अंतगयं ? उ. मग्गओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा जाय पईव वा मग्गओ काउं अणुक्रमाणे अणुकड्ढेमाणे गच्छेजा से तेणं जीइठाणेणं मग्गओ चेव पासड़। एवामेव मग्गओ अंतगएण ओहिणाणेणं मग्गओ चैव संखेज्जाई वा असंखेज्जाइ वा जोयणाई जाणइ पासइ सेतं मग्गओ अंतगयं । प. ३. से किं तं पासओ अंतगयं ? - उ. पासओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा जाव पईवं वा पासओ काउं परिकड्ढेमाणे- परिकड्ढेमाणे गच्छेज्जा से तेण जोइट्ठाणेण पासओ चैव पासइ । एवामेव पासओ अंतगएणं ओहिणाणेणं पासओ चेय संखेज्जाईवा, असंखेज्जाई वा जोयणाइं जाणइ पासइ । से तं पासओ अंतगयं । प. ४. से कि मज्झगये ? उ. मज्झगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा जाव पईव वा मत्थए काउं गच्छेज्जा से तेणं जोइट्ठाणेणं सव्वओ समता पासइ एवामेव मज्झगएणं ओहिणाणेणं सव्वओ समता संखेज्जाई वा, असंखेज्जाई वा जोयणाई जाणइ पासइ । सेतं मज्झगयं । प अंतगयस्स मञ्झगयस्स व को पविसेसो ? उ. अंतगएणं ओहिणाणेणं एग दिसिं चेव जाणइ पास । मज्झगएणं ओहिणाणेणं सव्वओ समंता जाणइ पासइ । सेतं आणुगामिव ओहिणा ||" (२) अगाणुगामि- ओहिनाणस्स परूवणंप से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ? उ. अणाणुगामियं ओहिनाणं- से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंत जोइट्ठाणं कार्ड तस्सेच जोइठाणस्स परिपेरतेहिपरिपेरतेहिं परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्ठाण पासइ, अण्णत्थ गए ण पासइ. १. यह पाठ व्यवस्थित किया है। - नंदी. सु. १६-२२ द्रव्यानुयोग - (१) इसी प्रकार पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान से अवधिज्ञानी आगे के प्रदेश में संख्यात या असंख्यात योजनों तक पदार्थों को देखता हुआ चलता है। यह पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान का स्वरूप है। प्र. २. मार्गत अन्तगत अवधिज्ञान का क्या स्वरूप है ? उ. मार्गतः अन्तगत-जैसे कोई व्यक्ति उल्का यावत् दीपक को हाथ या किसी दण्डे द्वारा पीछे करके चलता है और उक्त पदार्थों के प्रकाश से पीछे स्थित पदार्थों को देखता हुआ जाता है। इसी प्रकार मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान से अवधिज्ञानी पीछे के प्रदेश में संख्यात या असंख्यात योजन तक पदार्थों को देखता हुआ चलता है। यह मार्गतः अन्तगत का स्वरूप है। प्र. ३. पार्श्वतः अवधिज्ञान क्या है ? उ. पार्श्वतः अन्तगत-जैसे कोई पुरुष उल्का यावत् दीपक को हाथ या किसी दण्डे के अग्रभाग से पार्श्वभाग में लेकर चलता है और उक्त पदार्थों के प्रकाश से मार्ग में पड़े पदार्थों को देखता हुआ जाता है। इसी प्रकार पाश्र्ववर्ती अवधिज्ञानी पार्श्ववर्ती प्रदेश में संस्थ या असंख्यात योजन तक पदार्थों को देखता हुआ चलता है। यह पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान का स्वरूप है। प्र. ४. मध्यगत अवधिज्ञान क्या है ? उ. मध्यगत अवधिज्ञान-जैसे कोई पुरुष उल्का यावत् दीपक को मस्तक पर रखकर चलता है। वह पुरुष उपर्युक्त प्रकाश के द्वारा सर्व दिशाओं में स्थित पदार्थों को देखते हुए चलता है। इसी प्रकार मध्यगत अवधिज्ञान भी चारों ओर के संख्यात या असंख्यात योजन तक के पदार्थों को देखता हुआ चलता है। यह मध्यगत अवधिज्ञान का स्वरूप है। प्र. अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान में क्या अन्तर है ? उ. अन्तगत अवधिज्ञान से अवधिज्ञानी किसी एक दिशा में ही जानता देखता है किन्तु मध्यगत अवधिज्ञान से सभी दिशाओं में जानता देखता है। यह आनुगामिक अवधिज्ञान का स्वरूप है। (२) अनानुगामिक अवधिज्ञान का प्ररूपणप्र. अनानुगामिक अवधिज्ञान क्या है ? उ. अनानुगामिक अवधिज्ञान जैसे कोई व्यक्ति एक बहुत बड़े अग्नि कुण्ड में अग्नि को प्रज्वलित करके उस अग्नि के चारों ओर सभी दिशा-विदिशाओं में घूमता है तथा उस ज्योति से प्रकाशित क्षेत्र को ही देखता है, किन्तु अन्यत्र जाने पर नहीं देखता है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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