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________________ ज्ञान अध्ययन ६६. पुष्क्रिया उवंगस्स उक्खेव-निक्खेबो प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उवंगाणं दोच्चस्स वग्गस्स कप्पवडिसियाणं अथमट्ठे पत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स उवंगाणं पुष्फियाणं के अट्ठे पन्नत्ते ? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणाधेयं ठाणं संपत्तेणं उवंगाणं तच्चस्स वग्गस्स पुष्फियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. चन्दे, २. सूरे, ३. सुक्के, ४. बहुपुत्तिय, ५. पुण्ण, ६. माणिभद्दे । ७. दत्ते ८. सिवे ९ बले या १० अणादिए चैव बोद्धव्वे ॥ प. जड़ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेण जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेण पुष्फियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स पुफियाणं के अट्ठे पत्रते ? पुष्क्रिया. ३. सु. १ उ. एवं खलु जंबू १ ! निक्खेयओ तं एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपतेणं पुष्फियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णले ति बेमि " - पुष्फिया व. ३, सु. ७ ६७. पुष्कचूलिया उवंगस्स उक्खेव-निक्खेवो प. जइ णं अंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उवंगाणं तच्चस्स पुफियाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्यस्स णं भते ! वग्गस्स उवंगाणं पुष्फयूलियाण के अट्ठे पनते ? उ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव सिद्धिगडणामधेय ठाणं संपतेणं उबंगाणं चउत्यस्स णं पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. सिरि, २. हिरि, ३. घि, ४. कितीओ, ५. बुद्धी, ६. लच्छी य होइ बोद्धव्या । ७. इलादेवी ८. सुरादेवी, ९. रसदेवी, 90. गंधदेवी य। 1 प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुष्फयूलियाणं दस अज्झयणा पत्रत्ता, पढमस्स णं भंते! पुप्फचूलियाणं के अट्ठे पन्नत्ते ? तएण से सुहम्मे जम्बू अणगारे एवं वयासी ३... - फलिया व ४, सु. १.५ उ. एवं खलु जंबू ! 9. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपोद्घात हैं। २. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपसंहार सूत्र जानने चाहिए। ६५३ ६६. पुष्पिका उपांग का उत्क्षेप निक्षेप प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त ने उपांग सूत्र के द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! उपांग सूत्र के तृतीय वर्ग पुष्पिका का क्या अर्थ कहा है ? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के तृतीय वर्ग पुष्पिका के दस अध्ययन कहे हैं, यथा १. चन्द्र, २. सूर्य ३. शुक्र. ४. बहुपुत्रिका, ५. पूर्णभद्र, ६. माणिभद्र, ७. दत्त, ८. शिव, ९. बल, १०. अनादृत । प्र. भन्ते यदि श्रमण भगवान् महावीर पावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के पुष्पिका नामक वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो भन्ते ! पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? उ. जंबू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें ) । निक्षेप जम्बू ! इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा पुष्पिका (वर्ग) के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ। ६७. पुष्पचूलिका उपांग का उत्क्षेप-निक्षेप प्र. भन्ते यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के पुष्पिका नामक तृतीय वर्ग का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! उपांग सूत्र के पुष्पवृतिका नामक चतुर्थ वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के चतुर्थ पुष्पचूलिका वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं, यथा १. श्रीदेवी, २. ही देवी, ३. धृतिदेवी, ४. कीर्तिदेवी ५. बुद्धिदेवी, ६. लक्ष्मी देवी, ७. इलादेवी, ८. सुरादेवी, ९. रसदेवी, 90. गन्धदेवी । प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो भन्ते ! पुष्पचूलिका के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? तब आर्य सुधर्मा ने अपने शिष्य जम्बू अणगार से इस प्रकार कहा उ. जंबू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें) ३. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपोद्घात हैं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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