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________________ ६५४ निक्यओ तं एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेणं पुष्कचूलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते'। ति बेमि -पुलिया व ४ सु. १० ६८. वहिदसा उवंगस्स उक्खेव निक्खेवो प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स णं वग्गस्स पुप्फचूलियाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स उवंगाणं वहिदसाणं के अट्ठे पण्णत्ते ? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उयंगाणं पंचमस्स णं वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा ', 7 १. निसढे २ माअणि ३. वह, ४. वहे, ५. पगया, ६. जुत्ती, ७. दसरहे, ८. दढरहे य। ९. महाधणु, १०. सत्तधणू ११. दसधणू नामे, १२. सयधणू य ॥ प. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेण जाय सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उदंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वहिदसाणं दुवास अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वहिदसाणं के अठ्ठे पण्णत्ते ? तसे सुहम्मे जम्बू अणगारं एवं वयासीउ एवं खलु जंबू ! निक्खेवओ - वहिदसा. वग्ग. ५, सु. १-५ एवं खलु जम्बू ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपत्तेण वहिदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते ३ । त्ति बेमि । एवं सेसा वि एकारस अयणा नेयव्या संगहणीअणुसारेण अहीणमति एकारसमु वि - वहिदसा. वग्ग. ५ सु. २० ६९. निरयावलियाई उबंगाणं उपसंहारो उवंगाणं पंच वग्गा पन्नत्ता, तं जहा १. निरयायलियाओ २. कप्पवडिसियाओ ३. पुफियाओ ४. पुप्फचूलियाओ, ५. वहिदसाओ । निरयावलिया उवंगे णं एगो सुयक्खंधो, पंच वग्गो पंचसु दिवसेसु उद्दिस्संति, तत्य चउसु वग्गेसु दस-दस उद्देसगा, उद्देगा। " पंचमवग्गे बारस - निरिया. वग्ग. ५ ७०. चंदपण्णत्ती आई तओ पण्णत्तीओ कालियाओतओ पण्णत्तीओ कालेणं अहिज्जंति, तं जहा 9. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपसंहार सूत्र जानने चाहिए। २. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपोद्घात हैं। द्रव्यानुयोग - (१) निक्षेप हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा पुष्पचूलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा में कहता हूँ। ६८. वृष्णिदशा उपांग का उत्क्षेप निक्षेप प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के चतुर्थ पुष्पचूलिका वर्ग का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! उपांग सूत्र के पांचवें वृष्णिदशा नामक वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? उ. जम्बू ! इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के पांचवें वृष्णिदशा वर्ग के बारह अध्ययन कहे हैं, यथा १. निषध, २. मातलि, ३. वह, ४. वहे, ५. पगया, ६. युक्ति, ७. दशरथ, ८. दृढरथ, ९. महाधनुः १०. सप्तधनुः, ११. दशधनुः, १२. शतधनु । प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के वृष्णिदशा नामक पांचवें वर्ग के बारह अध्ययन कहे हैं तो भन्ते ! वृष्णिदशा के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? तब आर्य सुधर्मा ने उत्तर में जम्बू अनगार से इस प्रकार कहाउ. जंबू ! (आगे का वर्णन धर्मकयानुयोग में है) निक्षेप जंबू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा वृष्णिदशा के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। मैं ऐसा कहता हूँ । इसी प्रकार संग्रहणी गाथा के अनुसार बिना किसी हीनाधिकता के शेष ग्यारह अध्ययनों का अर्थ जान लेना चाहिए। ६९. निरयायसिकादि उपांगों का उपसंहारउपागों के पांच वर्ग कहे गए हैं, यथा १. निरयावलिका, २. कल्पावतंसिका, ३. पुष्पिका, ४. पुष्पचूलिका, ५. वृष्णिदशा निरयावलिका उपांग में एक श्रुतस्कन्ध है। पांच वर्ग हैं, पांच दिनों में वांचन किया जाता है। प्रारम्भ के चार वर्गों में दस-दस उद्देशक हैं और पांचवें वर्ग में बारह उद्देशक है। ७०. चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि तीन प्रज्ञप्तियां कालिकतीन प्रज्ञप्तियां यथाकाल पढ़ी जाती हैं, यथा ३. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपसंहार सूत्र जानने चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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