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________________ ६५२ द्रव्यानुयोग-(१) १. काल, २. सुकाल, ३. महाकाल, ४. कृष्ण, ५. सुकृष्ण, ६. महाकृष्ण, ७. वीरकृष्ण, ८. रामकृष्ण, ९. पितृसेनकृष्ण, १०. महासेनकृष्ण। १.काले, २.सुकाले, ३. महाकाले, ४. कण्हे, ५.सुकण्हे तहा ६.महाकण्हे।७.वीरकण्हे य बोद्धव्वे, ८. रामकण्हे तहेव य। ९. पिउसेणकण्हे नवमे, १०. दसमे महासेणकण्हे ॥१॥ प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स निरयावलियाणं के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू! -निर.व.१,अ.१,सु.१-५ ६४. बिइयज्झयणस्स उक्खेवोप. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स निरयावलियाणं के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू! एवं सेसा वि अट्ठ अज्झयणा नेयव्या पढम सरिसा प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के प्रथम वर्ग निरयावलिका के दस अध्ययन कहे गए हैं तोभन्ते ! निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा गया है ? उ. जम्बू !(आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें)। ६४. द्वितीय अध्ययन का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा गया है तो भन्ते ! निरयावलिका के द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा गया है? उ. जम्बू !(आगे का वर्णन धर्मकथानुयोग में देखें) इसी प्रकार शेष आठ अध्ययन भी प्रथम अध्ययन के समान जानने चाहिए। विशेष-माताओं के नाम पुत्र के नाम के समान हैं। ६५. कल्पावतंसिका उपांग का उत्क्षेप-निक्षेपप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा उपांग सूत्र के प्रथम निरयावलिका वर्ग का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका के कितने अध्ययन कहे हैं? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा कल्पावतंसिका के दश अध्ययन कहे हैं, यथा णवर-मायाओ सरिसणामाओ। -निर. व. १, सु.३५ ६५. कप्पवडिंसिया उवंगस्स उक्खेव-निक्खेयोप. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उबंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स कप्पवडिसियाणं कइ अज्झयणा पण्णता? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा १.पउमे जाव १०.नंदणे प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं कप्पवडिसियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू २! -कप्प. वग्ग.२,सु.१ निक्खेवओएवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते,३ त्ति बेमि। -कप्प. वग्ग.२,सु.३ १. पद्म यावत् १०. नंदन। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा कल्पावतंसिका के दस अध्ययन कहे गए हैं तोभन्ते ! कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? उ. जंबू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें) निक्षेपइस प्रकार हे जंबू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ। १. (क) इसी प्रकार सभी अध्ययनों के उपोद्घात हैं। (ख) इस सूत्र में उपसंहार सूत्र नहीं है। २. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपोद्घात हैं। ३. इसी प्रकार शेष अध्ययनों के उपसंहार सूत्र जानने चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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