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________________ ६५० ( द्रव्यानुयोग-(१)) ५६. सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन का उपसंहार श्रमण भगवान् महावीर ने सम्यक्त्वपराक्रम नामक अध्ययन का यह अर्थ कहा है, प्रज्ञापित किया है, प्ररूपित किया है, दर्शित, विशेष रूप से दर्शित और उपदर्शित किया है। ५७. उत्तराध्ययन सूत्र के कुछ अध्ययनों के उत्क्षेप-निक्षेप जो (बाह्य और आभ्यन्तर) संयोग से सर्वथा मुक्त अनगार भिक्षु है, उसके आचार को अनुक्रम से मैं प्रकट करूंगा (उसे) मुझ से सुनो। ५६. सम्मत्तपरक्कमस्स निक्खेवो एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पन्नविए परूविए दंसिए निर्दसिए उवदंसिए। -उत्त.अ.२९, सु. ७४ ५७. उत्तरज्झयणस्स कइपय अज्झयणाणं उक्खेव-निक्खेवो संजोगा विप्पमुक्कस्स,अणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे।। -उत्त.अ.११,गा.१ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी, अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाण- दंसणधरे। अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए। -उत्त.अ.६ गा.१८ इह एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं। तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं आराहिया दुवे लोगा। -उत्त.अ.८,गा.२० एसा अजीवविभत्ती,समासेण वियाहिया। इत्तो जीवविभत्तिं बुच्छामि अणुपुव्वसो॥ -उत्त.अ.३६,गा.४७ ५८. उत्तरायणस्स निक्खेवो इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए भविसिद्धियसम्मए।त्ति बेमि॥ -उत्त.अ.३६, गा.२६८ ५९. दसासुयक्खन्धस्स पढमा दसाया उक्खेव-निक्खेवो सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इस प्रकार अनुत्तरज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तर ज्ञान-दर्शनधारक, अर्हत् व्याख्याता, ज्ञातपुत्र, वैशालिक (तीर्थकर) भगवान महावीर ने अप्रमाद का उपदेश कहा है। इस प्रकार विशुद्ध प्रज्ञा वाले कपिल ने इस धर्म का प्रतिपादन किया है। जो इस धर्म की सम्यक् आराधना करेंगे, वे संसारसागर को पार करेंगे और उनके द्वारा दोनों ही लोक आराधित होंगे। यह संक्षेप से अजीवविभाग का निरूपण किया गया है अब यहां से आगे जीव विभाग का क्रमशः कथन करूंगा। ५८. उत्तराध्ययन सूत्र का उपसंहार इस प्रकार भव्य जीवों को अभीष्ट छत्तीस उत्तम अध्यायों को प्रकट करके बोधि प्राप्त ज्ञातवंशीय भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए। ऐसा मैं कहता हूँ। ५९. दशाश्रुतस्कन्ध की प्रथम दशा का उत्क्षेप-निक्षेप हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है-उन भगवान् महावीर स्वामी ने ऐसा कहा हैइस आर्हत् प्रवचन में निश्चय से स्थविर भगवन्तों ने बीस असमाधिस्थान कहे हैं। प्र. स्थविर भगवन्तों ने वे कौन से बीस असमाधिस्थान कहे हैं ? इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णता। प. कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता? उ. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता निक्खेवो-एए खलु ते थेरेहिं । भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता, त्ति बेमि। -दसा.द. १, सु. १ ६०. दसा-कप्प-ववहाराणं अज्झयणा छव्वीसं दसा-कप्प-ववहाराणं उद्देसणकाला पण्णत्ता,तं जहा उ. स्थविर भगवन्तों ने वे बीस असमाधिस्थान इस प्रकार कहे हैं, (आगे का वर्णन चरणानुयोग में देखें) निक्षेप स्थविर भगवन्तों ने ये बीस असमाधिस्थान कहे हैं ऐसा मैं कहता हूँ। ६०. दशा-कल्प-व्यवहार के अध्ययन दशा-कल्प और व्यवहार सूत्रों के छब्बीस उद्देशनकाल (अध्ययन) कहे गए हैं, यथादशाश्रुत स्कन्ध के दश, बृहत्कल्प सूत्र के छह और व्यवहार सूत्र के दश अध्ययन हैं। ६१. ऋषिभाषित अध्ययनों की संख्या देवलोग से च्युत-ऋषिभाषित के चवालीस अध्ययन कहे गए हैं। दस दसाणं, छ कप्पस्स, दस ववहारस्स। -सम.सम.२६,सु.१ ६१. इसिभासियऽज्झयणस्स संखा चोयालीसं अज्झयणा इसिभासियादियलोगचुया भासिया पण्णत्ता। -सम. सम. ४४, सु.१ १२. इसी प्रकार दूसरी दशा से सातवीं दशा पर्यंत उपोद्घात व उपसंहार सूत्र हैं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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