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________________ ६२० द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा छठे अंग के प्रथम श्रुतस्कन्ध "ज्ञात' का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! द्वितीय श्रुतस्कन्ध का क्या अर्थ कहा गया है? उ. जम्बू ! धर्म कथा के दस वर्ग कहे गए हैं, यथा १. प्रथम वर्ग में चमर की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। २. द्वितीय वर्ग में बली वैरोचनेन्द्र वैराचनराज की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ३. तृतीय वर्ग में असुरेन्द्र को छोड़कर दक्षिण दिशा के भवनवासी इन्द्रों की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ४. चतुर्थ वर्ग में असुरेन्द्र को छोड़कर उत्तर दिशा के भवनवासी इन्द्रों की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ५. पंचम वर्ग में दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तरेन्द्रों की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ६. छठे वर्ग में उत्तर दिशा के वाणव्यन्तरेन्द्रों की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ७. सातवें वर्ग में चन्द्र की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ८. आठवें वर्ग में सूर्य की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। ९. नवमें वर्ग में शक्र की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। १०. दसवें वर्ग में ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों के कथानक हैं। प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खंधस्स नायाणं अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते !सुयक्खंधस्स के अढे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू।धम्मकहाणं दस वग्गा पण्णत्ता,तं जहा १. चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे। २. बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीए वग्गे। ३. असुरिंदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं भवणवासि इंदाणं अग्गमहिसीणं तइये वग्गे। ४. उत्तरिल्लाणं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासि-इंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे। ५. दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे। ६. उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छठे वग्गे। ७. चंदस्स अग्गमहिसीणं सत्तमे वग्गे। ८. सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्ठमे वग्गे। ९. सक्कस्स अग्गमहिसीणं नवमे वग्गे। १०. ईसाणस्स य अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे। -णाया. सु. २, अ.१, सु.१-४ (झ) पढम वग्गस्स उक्खेव निक्खेवोप्र. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू । समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा १.काली,२.राई,३. रयणी, ४.विज्जू, ५.मेहा। प्र. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया' महावीरेणं जाव सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू । -णाया. सुय.२, व.१, अ.१, सु. ५-६ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्तेणं पढमस्स पढमज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते',त्ति बेमि। -णाया. सुय.२, व.१,अ.१,सु.३४ प्र. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमठेपण्णत्ते, (झ) प्रथम वर्ग का उत्क्षेप निक्षेपप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा धर्म कथा के दस वर्ग कहे हैं तो भन्ते ! प्रथम वर्ग का क्या अर्थ कहा गया है? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे गए हैं, यथा १. काली, २. राजी, ३. रजनी, ४. विद्युत्, ५. मेधा। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं तो भन्ते ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? उ. जम्बू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें।) हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा धर्म कथा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो 9. सभी अध्ययनों का निक्षेप सूत्र इसी प्रकार है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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