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ज्ञान अध्ययन
प से किं तं दिट्ठिवाओवएसेणं ?
उ. दिट्ठिवा ओवएसेणं-सण्णिसुयस्स खओवसमेणं सण्णी
लब्भइ,
असण्णिसुयस्स खओवसमेणं असण्णी लब्भइ, से तं दिट्टिया ओबएसेणं ।
सेतं सण, सेतं असण्णिसुयं ।
(५) सम्मसुर्य -
प से किं तं सम्मसूर्य ?
उ सम्मसुर्य जं इमं अरहंतेर्हि उप्पण्णणाण- दंसणधरेहिं
पूइएहिं,
तीय-पच्चुप्पण्ण-मणागयजाणएहिं,
सव्वहिं सव्यदरिसीहिं पणीयं दुयालसंग गणिपिडगं, तं जहा
१. आधारो.
३. ठाणं,
५. विवाहपण्णत्ती,
६. णायाधम्मकहाओ,
७. उवासगदसाओ,
८. अतंगडदसाओ,
९. अणुत्तरोववाइयदसाओ, १०. पण्हावागरणाई, ११. विवागसुयं, १२. दिट्ठिवाओ। इच्चेयं दुवालसंर्गं गणिपिडर्गं चोद्दसपुव्विस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा ।
१. भारहं,
३. भीमासुरक्खं, ५. सगडभद्दियाओ,
७. कप्पासिय,
९. कणगसत्तरी,
भगवंतेहिं
तेलोक्कणिरिविवय- महिय
११. बुद्धवयणं,
१३. काविलियं,
- नंदी. सु. ७५
सेतं सम्मसु । (६) मिच्छसूर्य
प से किं तं मिच्छसुयं ?
उ. मिच्छसुर्य जं इमं अण्णाणिएडिं मिच्छाविट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि मइविगप्पियं, तं जहा
२. रामायणं,
४. कोडिल्लयं,
१५. सठ्ठितंतं, १७. पुराणं,
२. सूयगडो,
४. समवाओ,
६. खोडगमुहं,
८. नागसुहुमं,
१०. बहलेसिय
१२. तेरासियं
१४. लोगायत १६. माढर
१८. वागरणं,
- नंदी. सु. ७६
१९. णाडगादी ।
अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेदा संगोवंगा। एयाई मिच्छदिस्सि मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्डसूर्य,
एयाइं चेव सम्मदिट्ठिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं ।
अहवा मिच्छदिट्ठिस्स वि सम्मसुयं,
प्र.
उ.
(५)
प्र.
उ.
दृष्टिवाद उपदेश संज्ञीश्रुत किसे कहते हैं ?
दृष्टिवाद उपदेश से संज्ञिश्रुत के क्षयोपशम से संज्ञी कहा जाता है।
असति के क्षयोपशम से असंज्ञी कहा जाता है।
यह दृष्टिवादोपदेश का स्वरूप है।
यह संति और अति का वर्णन हुवा।
सम्यश्रुत
सम्यक् श्रुत किसे कहते हैं ?
सम्यक् श्रुत-उत्पन्न - ज्ञान और दर्शन के धारक तीन लोक के जीवों द्वारा आदरसन्मानपूर्वक देखे गए तथा यथावस्थित भावयुक्त कीर्तन नमस्कार किए गए,
अतीत, वर्तमान और अनागत के ज्ञाता,
सर्वज्ञ और सर्वदर्शी अर्हतु (तीर्थकर भगवन्तों) द्वारा प्रणीत जो यह द्वादशांग रूप गणिपिटक है वह सम्यक्श्रुत हैं, यथा
१. आचारांग,
३. स्थानांग,
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति,
यह सम्यक् श्रुत का स्वरूप है। मिथ्याश्रुत
६. ज्ञाताधर्मकथांग,
७. उपासकदशांग,
८. अन्तकृद्दशांग,
९. अनुत्तरोपपातिकदशा, १० प्रश्नव्याकरण, ११. विपाकश्रुत, १२. दृष्टिवाद । यह द्वादशांग गणिपिटक चौदह पूर्वधारी और सम्पूर्ण दस पूर्वधारी का सम्यकृत होता है उससे कम अर्थात् कुछ कम दस पूर्व और नव आदि पूर्वो के ज्ञाता का श्रुत विकल्प से सम्पत है।
१. महाभारत,
३. भीमासुरोक्त,
५. शकटभद्रिका,
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(६)
प्र. मिथ्या श्रुत किसे कहते हैं ?
उ. अज्ञानी एवं मिथ्यादृष्टियों द्वारा स्वच्छंद और विपरीत बुद्धि
से कल्पित किए हुए ग्रन्थ मिथ्याभुत है, यथा
७. कार्पासिक,
९. कनकसप्तति,
२. सूत्रकृतांग,
४. समवायांग,
११. बुद्धवचन,
१३. कापिलीय,
१५. षष्टितंत्र,
१७. पुराण.
१९. नाटक आदि।
२. रामायण,
४. कौटिल्य,
६. घोटकमुख,
८. नाग-सूक्ष्म,
१०. वैशेषिक,
१.२. त्रैराशिक,
१४. लोकायत,
१६. माठर, १८. व्याकरण,
अथवा बहत्तर कलाएं और अंगोपांग सहित चार वेद हैं।
ये ग्रन्थ मिथ्यादृष्टि द्वारा मिथ्यारूप से ग्रहण किए गए हों तो मिथ्याबुत है।
ये ही ग्रन्थ सम्यकदृष्टि द्वारा सम्यक् रूप से ग्रहण किए गए हों तो सम्यक् श्रुत हैं।
अथवा मिध्यादृष्टि के लिए भी यही ग्रन्थ सम्यकृत हैं,