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________________ ५९८ (१) अक्खरसुयंप. से किं तं अक्खरसुयं? उ. अक्खरसुयं तिविहं पण्णत्तं,तं जहा १.सण्णक्खरं, २.वंजणक्खरं, ३.लद्धिअक्खरं। प. (क) से किं तं सण्णक्खरं? उ. सण्णक्खरं अक्खरस्स संठाणाऽगिई। सेतं सण्णक्खरं। प. (ख) से किं तं वंजणक्खरं? उ. वंजणक्खरं अक्खरस्स वंजणाभिलावो। सेतं वंजणक्खरं। प. (ग) से किं तं लद्धिअक्खरं? उ. लद्धिअक्खरं-अक्खरलद्धीयस्स लद्धिअक्खर समुप्पज्जइ, तं जहा१. सोइंदियलद्धिअक्खरं, २. चक्विंदियलद्धिअक्खरं, ३. घाणेदियलद्धिअक्खर, ४. रसनिंदियलद्धिअक्खर, ५. फासेंदियलद्धिअक्खरं, ६. णोइंदियलद्धिअक्खरं। से तंलद्धिअक्खरं, से तं अक्खरसुयं। -नंदी. सु.७३ (२) अणक्खरसुयंप. से किं तं अणक्खरसुयं? उ. अणक्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्तं,तं जहा ऊससियं णीसियं णिच्छूढं खासियं च छीयं च। णिस्सिंघियमणुसार अणक्खरं छेलियादीयं ।। द्रव्यानुयोग-(१) (१) अक्षरश्रुतप्र. अक्षरश्रुत कितने प्रकार का है ? उ. अक्षरश्रुत तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १.संज्ञा-अक्षर, २. व्यंजन-अक्षर, ३. लब्धि-अक्षर। प्र. (क) संज्ञा-अक्षर किसे कहते हैं ? उ. अक्षर के संस्थान आकृति को संज्ञा अक्षर कहते हैं। यह संज्ञा-अक्षर का स्वरूप है। प्र. (ख) व्यंजन-अक्षर किसे कहते हैं ? उ. उच्चारण किए जाने वाले अक्षर व्यंजन अक्षर कहे जाते हैं। यह व्यंजन-अक्षर का स्वरूप है। प्र. (ग) लब्धि अक्षर किसे कहते हैं ? उ. अक्षर-लब्धि वाले जीव को लब्धि अक्षर (भाव श्रुतज्ञान) उत्पन्न होता है, (वह छ प्रकार का है) यथा१. श्रोत्रेन्द्रियलब्धि अक्षर, २. चक्षुरिन्द्रियलब्धि अक्षर, ३. घ्राणेन्द्रियलब्धि अक्षर, ४. रसनेन्द्रियलब्धि अक्षर, ५. स्पर्शनेन्द्रियलब्धि अक्षर, ६. नोइन्द्रियलब्धि अक्षर। यह लब्धि अक्षर का स्वरूप है, यह अक्षरश्रुत का वर्णन हुआ। (२) अनक्षरश्रुत प्र. अनक्षरश्रुत कितने प्रकार का है? उ. अनक्षरश्रुत अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा लम्बे-लम्बे श्वास लेना, श्वास छोड़ना, थूकना, खाँसना, छींकना, नाक साफ करना, हंकार करना तथा अन्य संकेत युक्त अव्यक्त शब्द करना। यह अनक्षरश्रुत का स्वरूप है। (३-४) संज्ञि असंज्ञि श्रुतप्र. संज्ञिश्रुत कितने प्रकार का है? उ. संज्ञिश्रुत तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. कालिकी-उपदेश, २. हेतु-उपदेश, ३. दृष्टिवाद उपदेश। प्र. कालिकी-उपदेश संझिश्रुत किसे कहते हैं ? उ. कालिकी उपदेश से जिसके ईहा, अपोह (निश्चय) मार्गणा (अन्वय धर्म का अन्वेषण), गवेषणा (व्यतिरेक धर्म का अन्वेषण), चिंता और विमर्ष हो, वह संज्ञी कहा जाता है। जिसके ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता और विमर्श न हो वह असंज्ञी कहा जाता है। यह कालिकी उपदेश का स्वरूप है। प्र. हेतु-उपदेश संज्ञिश्रुत किसे कहते हैं ? उ. हेतु-उपदेश से जिस प्राणी में अभिसंधारण पूर्वक करण शक्ति अर्थात् विचार पूर्वक क्रिया करने की शक्ति है वह संज्ञी कहा जाता है। जिस प्राणी में अभिसंधारणपूर्वक करण-शक्ति अर्थात् विचारपूर्वक क्रिया करने की शक्ति नहीं है वह असंज्ञी कहा जाता है। यह हेतु उपदेश का स्वरूप है। से तं अणक्खरसुयं। -नंदी.सु.७४ (३-४) सण्णि-असण्णिसुयंप. से किं तं सण्णिसुयं? उ. सण्णिसुयं तिविहं पण्णत्तं,तं जहा १. कालिओवएसेणं, २. हेऊवएसेणं, ३. दिट्ठिवाओवदेसेणं। प. से किं तं कालिओवएसेणं? उ. कालिओवएसेणं जस्स णं अस्थि ईहा अवोहो मग्गणा गवेसणा चिंता वीमंसा,सेणं सण्णि त्ति लब्भइ, जस्स णं णत्थि ईहा अवोहो मग्गणा गवेसणा चिंता वीमंसा, सेणं असण्णि त्ति लब्भइ। से तं कालिओवएसेणं। प. से किं तं हेऊवएसेणं? उ. हेऊवएसेणं-जस्स णं अस्थि अभिसंधारणपुव्विया करणसत्ती से णं सण्णि त्ति लब्भइ, जस्स णं णत्थि अभिसंधारणपुब्विया करणसत्ती से णं असण्णि त्ति लब्भइ। से तं हेऊवएसेणं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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