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________________ ज्ञान अध्ययन विसेसया मईसम्मदिट्ठिस्स मई मईनाणं, मिच्छादिहिस्स मई मईअन्नाणं। अविसेसियं सुयंसुयनाणंच, सुयअन्नाणं च। विसेसियं सुयंसम्मदिट्ठिस्स सुयं सुयनाणं, मिच्छादिट्ठिस्स सुयं सुयअन्नाणं। ५. आभिणिबोहियनाणस्स पज्जवणामाणि १. ईहा, २. अपोह, ३. वीमंसा, ४. मग्गणा य ५. गवेसणा। ६. सण्णा -नंदी. सु.४५-४६ ५९१ वही मति-विशेष रूप सेसम्यक्दृष्टि की मति-मतिज्ञान है। मिथ्यादृष्टि की मति-मति अज्ञान है। सामान्य रूप से श्रुतश्रुतज्ञान और श्रुत-अज्ञान रूप है। वही श्रुत विशेष रूप सेसम्यक्दृष्टि का श्रुत-श्रुतज्ञान है। मिथ्यादृष्टि का श्रुत-श्रुतअज्ञान है। ५. आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायवाची नाम १. ईहा-सदर्थ का पर्यालोचन। २. अपोह-निश्चय करना। ३. विमर्श-ईहा और अवाय के मध्य में होने वाली विचारधारा। ४. मार्गणा-अन्वय धर्मों का अन्वेषण करना। ५. गवेषणा-व्यतिरेक धर्मों से व्यावृत्ति करना। ६. संज्ञा-अतीत में अनुभव की हुई और वर्तमान में अनुभव की जाने वाली वस्तु की एकता का अनुसंधान-ज्ञान करना। ७. स्मृति-अतीत में अनुभव की हुई वस्तु का स्मरण करना। ८. मति-जो ज्ञान वर्तमान विषय का ग्राहक हो। ९. प्रज्ञा-विशिष्ट क्षयोपशम से उत्पन्न यथावस्थित वस्तुगत धर्म का पर्यालोचन करना। ये सब आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायवाची नाम हैं। ६. आभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति आमिनिबोधिकज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति छियासठ सागरोपम की कही गई है। ७. आभिनिबोधिकज्ञान के भेद प्र. आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ? उ. आभिनिबोधिकतान का कहा गया है, यथा १. श्रुतनिश्रित, २. अश्रुतनिश्रित। ७. सई, ८. मई, ९. पण्णा , सव्वं आभिणिबोहियं॥ -नंदी. सु. ६० ६. आभिणिबोहिय नाणस्स उक्किट्ठा ठिई आभिनिबोहियनाणस्स णं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.६६, सु.४ ७. आभिणिबोहियणाणस्स भेया प. से किं तं आभिणिबोहियनाणं? उ. आभिणिबोहियनाणं दुविहं पण्णत्तं,तं जहा. १. सुयणिस्सियं च, . २. असुयणिस्सियं च। -नंदी सु.४७ ८. अस्सुय-णिस्सिय मई णाणस्स भेया प. से किं तं असुयणिस्सियं? उ. असुयणिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं,तं जहा १. उप्पत्तिया, २. वेणइया, ३. कम्मया, ४. पारिणामिया। बुद्धी चउव्विहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भइ२॥ ८. अश्रुतनिश्रित मति नानक भेद प्र. अश्रुतनिश्रित कितने प्रकार का है? र अश्रुतनिश्रित चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. औत्पातिकी, २. वैनयिकी, ३. कर्मजा, ४. पारिणामिकी। ये चार प्रकार की बुद्धियां शास्त्रकारों ने वर्णित की हैं, पांचवा भेद उपलब्ध नहीं होता है। १. औत्पातिकी बुद्धिपूर्व में बिना देखे, बिना सुने और बिना जाने पदार्थों के विशुद्ध अर्थ-(अभिप्राय) को जिस बुद्धि के द्वारा तत्काल ग्रहण कर लिया जाता है और जिसका अव्याहत (बाधा रहित फल होता है वह औत्पातिकी बुद्धि कही जाती है। १. उप्पत्तिया बुद्धीपुव्वं मदिट्ठमसुयमवेइयतक्खणविसुद्धगहियत्था। अव्याहयफलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया णामं ॥ १. ठाणं.अ.२,उ.१,सु.६०(१६) २. ठाणं अ.४, उ.४, सु.३६४ (१)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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