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________________ ५९२ १.भरह २.सिल, ३.मिंढ, ४. कुक्कुड,५.तिल, ६. वालुय, ७. हत्थी य, ८.अगड ९. वणसंडे १०. पायस, ११.अइया, १२.पत्ते, १३.खाडहिला १४.पंच पियरोय। १. भरहसिल २. पणिय ३. रुक्खे, ४. खुड्डग, ५. पड, ६. सरड, ७. काय, ८. उच्चारे। ९. गय १०. घयण, ११. गोल, १२. खंभे १३. खुड्डग १४-१५. मग्गित्थि . १६. पति १७. पुत्ते। १८. महुसित्थ, १९-२०. मुद्दियक य, २१. णाणए २२. भिक्खु २३. चेडगणिहाणे। २४. सिक्खा य २५. अत्थसत्थे, २६. इच्छा य महं २७. सयसहस्से ॥ २. वेणइया बुद्धीभरणित्थरणसमस्थातिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला। उभयोलोगफलवती विणयसमुत्था हवइ बुद्धी॥ १.णिमित्ते २. अत्थसत्थे य ३. लेहे ४.गणिए य ५.कूव ६.अस्से य। ७. गद्दभ ८.लक्खण ९.गंठी १०.अगए ११.रहिए य १२.गणिया य॥ १३.सीया साडी दीहं च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स। १४.निव्वोदए य १५.गोमे घोडग पडणंच रुक्खाओ॥ द्रव्यानुयोग-(१)) १. भरत, २. शिला, ३. मेंढे, ४. कुक्कुट, (मुर्गा) ५. तिल, ६. बालुक, (बालु), ७. हस्ती, (हाथी), ८. अगड (कूप), ९. वनखंड, १०. खीर, ११. अतिग, १२. पत्र, १३. खाडहिला (गिलहरी) १४. पंचपिता। १. भरतशिला, २. पणित (प्रतिज्ञा), ३. वृक्ष, ४. खुड्डग (अंगूठी),५. पट (वस्त्र), ६. सरट (गिरगिट),७. काक (कौए), ८. उच्चार (मलपरीक्षा), ९. गज (हाथी), १०. घृत (भांड), ११. गोल (लाख की गोली), १२. स्तम्भ, १३. क्षुद्रक, १४. मार्ग, १५. स्त्री, १६. पति, १७. पुत्र। १८. मधुसिक्थ (मधुच्छत्र), १९. मुद्रिका, २०. अंक, २१. नाणक (मोहरें), २२. भिक्षु, २३. चेटकनिधान, २४. शिक्षा, २५. अर्थशास्त्र (नीतिशास्त्र) २६. इच्छा, महत् (अधिक इच्छा), २७. शतसहन । ये औत्पतिकी बुद्धि के उदाहरण हैं। २. वैनयिकी बुद्धिकार्य भार के निरस्तरण (वहन करने) में समर्थ, त्रिवर्ग-(धर्म, अर्थ, काम) के सत्रार्थों का सार ग्रहण करने में प्रधान इस लोक और परलोक में फल देने वाली वैनयिकी बुद्धि होती है। १.निमित्त, २. अर्थशास्त्र, ३. लेख, ४. गणित, ५. कूप, ६. अश्व, ७. गर्दभ, ८. लक्षण, ९. ग्रन्थि, १०. अगड, ११. रथिक, १२. गणिका, १३. शीताशाटिका (गीली धोती), लम्बे तृण, बांई ओर क्रोंच पक्षी, १४. नीबोदक, १५. बैलों की चोरी, अश्व का मरण और वृक्ष से गिरना ये वैनयिकी बुद्धि के उदाहरण हैं। ३. कर्मजा बुद्धिउपयोग से कार्यों का सार देखने वाली, कार्य करते-करते और चिन्तन करते-करते व्यापक होने वाली और प्रशंसा प्राप्ति रूप फलवाली वह कर्मजा बुद्धि होती है। १. सुवर्णकार, २. किसान, ३. जुलाहा, ४. दर्वीकार, ५. मोती, ६. घी, ७. नट, ८. दर्जी, ९. बढ़ई, १०. हलवाई, ११. घट, १२. चित्रकार ये कर्म से उत्पन्न बुद्धि के उदाहरण हैं। ४. पारिणामिकी बुद्धिअनुमान, हेतु और दृष्टान्त से (कार्य) सिद्ध करने वाली, आयु के परिपक्व होने से प्राप्त होने वाली, स्वपर हितकारी तथा मोक्षरूपी फल देने वाली पारिणामिकी बुद्धि होती है। १. अभयकुमार, २. सेठ, ३. कुमार, ४. देवी, ५. उदितोदय राजा, ६. साधु (शिष्य) और नन्दिषेण, ७.धनदत्त,८. श्रावक,९. अमात्य, १०.क्षपक, ११. अमात्यपुत्र, १२. चाणक्य, १३. स्थूलिभद्र, १४. नासिक का सुन्दरीनन्द, १५. वज्रस्वामी, ३. कम्मिया बुद्धीउवओगदिट्ठसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला। साहुक्कारफलवती कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी॥ १.हेरण्णिए २.करिसए ३. कोलिय ४. डोए य ५. मुत्ति ६.घय ७. पवए। ८.तुण्णाग ९. वड्ढई य १०.पूविए य ११.घड १२.चित्तकारे य॥ ४. परिणामिया बुद्धीअणुमाणं-हेउ-दिळंतसाहिया वयविवागपरिणामा। हिय णिस्सेयस फलवती बुद्धी परिणामिया णाम॥ १.अभए, २.सेट्ठि,३.कुमारे, ४. देवी, ५. उदिओदए हवइ राया। ६. साहू य णंदिसेणे ७.धणदत्ते ८.सावग ९.अमच्चे॥ १०.खमए, ११.अमच्चपुत्ते १२.चाणक्के चेव १३.थूलभद्दे य। १४. णासिकसुंदरी-नंदे १५. वइरे परिणामिया बुद्धी॥
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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