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द्रव्यानुयोग-(१)
२४. णाणऽज्झयणं
२४. ज्ञान-अध्ययन
सूत्र
सूत्र
१. पंचविहणाणं
प. कइविहे णं भन्ते ! नाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे नाणे पण्णत्ते,तं जहा
१. आभिणिबोहियनाणे, २. सुयनाणे, ३. ओहिनाणे, ४. मणपज्जवनाणे,
५. केवलनाणे। -विया. स. ८, उ. २, सु. २२ २. णाणणिव्वत्ती भेया चउवीसदंडएसुय परूवणं
प. कइविहाणं भन्ते !णाणणिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहाणाणणिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा
१. आभिणिबोहियनाणणिव्वत्ती जाव ५. केवलनाणणिव्वत्ती। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं जस्स जइ णाणा तस्स तइ णाणणिव्वत्ती भाणियव्वा।
-विया.स.१९, उ.८,सु.३८-३९ ३. पंच णाणाणं दुविहत्तं
तं समासओ दुविहं पण्णत्तं,तं जहा१. पच्चक्खं च, २. परोक्खं चरे।
-नंदी. सु.२ ४. परोक्ख णाणस्स भेया
प. से किं तं परोक्खं? उ. परोक्खं दुविहं पण्णत्तं,तं जहा
१. आभिणिबोहियनाणपरोक्खं च, २. सुयनाणपरोक्खं च। जत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थ आभिणिबोहियनाणं। दोऽवि एयाइं अण्णमण्णमण्णुगयाई,
१. पांच प्रकार के ज्ञान
प्र. भन्ते ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! ज्ञान पांच प्रकार का कहा गया है, यथा
१. आभिनिबोधिकज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनःपर्यवज्ञान,
५. केवलज्ञान। २. ज्ञाननिर्वृत्ति के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपण
प्र. भन्ते ! ज्ञाननिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? उ. गौतम ! ज्ञाननिवृत्ति पांच प्रकार की कही गई है, यथा
१. आभिनिबोधिकज्ञान-निवृत्ति यावत् ५. केवलज्ञान-निवृत्ति। इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त जिसमें जितने ज्ञान हों तदनुसार उसमें उतनी ज्ञाननिवृत्ति कहनी
चाहिए। ३. पांच ज्ञानों का द्विविधत्व
वह ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. प्रत्यक्ष, २. परोक्ष। ४. परोक्ष ज्ञान के भेद
प्र. परोक्षज्ञान कितने प्रकार का है? उ. परोक्षज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. आभिनिबोधिकज्ञान, २. श्रुतज्ञान। जहां आभिनिबोधिकज्ञान है वहाँ श्रुतज्ञान भी है, जहां श्रुतज्ञान है वहां आभिनिबोधिकज्ञान भी है। ये दोनों ही अन्योऽन्य अनुगत-(एक दूसरे के साथ रहने वाले) हैं। फिर भी आचार्य इन (दोनों) में भिन्नता का प्रतिपादन करते हैंजो सन्मुख आए हुए पदार्थों को प्रमाणपूर्वक अभिगत करता (जान लेता) है वह "आभिनिबोधिक ज्ञान है और जो सुना जाता है वह “श्रुतज्ञान है।" "श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक होता है किन्तु मतिज्ञान श्रुतज्ञानपूर्वक नहीं होता है।" सामान्य रूप से मतिमतिज्ञान और मति-अज्ञान रूप है।
तह विपुण एत्थ आयरिया णाणतं पण्णवेंति
अभिणिबुज्झइ त्ति आभिणिबोहियं नाणं सुणेइत्ति सुयं।
"मईपुव्व जेण सुयं,ण मईसुयपुब्विया।"
अविसेसिया मईमईनाणं च मईअन्नाणं च।
१. (क) ठाणं.अ.५,उ.३,सु.४६४(१)
(ख) नंदी.सु.१ (ग) अणु.सु.१ (घ) तत्थ पंचविहं नाणं,सुर्य आभिणिबोहियं।
ओहिनाणं तइयं, मणनाणं च केवलं॥-उत्त.अ.२८, गा.४
२. ठाणं अ.२, उ.१, सु. ६०(१) ३. ठाणं अ.२,उ.१.सु.६०(१७)