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________________ । ५५० दं.१३-१६. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। णवर-वाउक्काइया वेउव्वियसरीरकायप्पओगी वि, वेउव्वियमीसगसरीरकायप्पओगी वि। प. दं. १७. बेइंदिया णं भंते ! किं ओरालियसरीर कायप्पओगी जाव कम्मगसरीरकायप्पओगी? उ. गोयमा ! बेइंदिया सव्वे वि ताव होज्जा, असच्चामो सवइप्पओगी वि, ओरालियसरीरकायप्पओगी वि, ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी वि। १. अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगी य, २. अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य। दं.१८-१९. एवं तेइंदिया चउरिदिया वि। दं.२०.पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहाणेरइया। णवर-औरालियसरीरकायप्पओगी वि, , ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी वि। १. अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगी य, २. अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगिणोध। प. दं.२१. मणूसा णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव किं कम्मगसरीरकायप्पओगी? उ. गोयमा ! मणूसा सव्वे वि ताव होज्जा, सच्चमणप्पओगी विजाव ओरालियसरीरकायप्पओगी वि, वेउब्वियसरीरकायप्पओगी वि, वेउव्वियमीसगसरीरकायप्पओगी वि। १. (१) अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य, २. (२) अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्प ओगिणो य, ३. (३) अहवेगेय आहारगसरीरकायप्पओगी य, ४. (४) अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य, ५. (५)अहवेगेय आहारगमीसगसरीरकायप्पओगी य, द्रव्यानुयोग-(१) दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यंत जानना चाहिए। विशेष-वायुकायिक वैक्रियशरीरकायप्रयोगी भी हैं और वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी है। प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीव क्या औदारिकशरीरकायप्रयोगी __ हैं यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी हैं ? उ. गौतम ! सभी द्वीन्द्रिय जीव असत्यामृषावचनप्रयोगी भी होते हैं, औदारिकशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं। १. अथवा कोई एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होता है, २. अथवा बहुत से (द्वीन्द्रिय जीव) कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं। दं.१८-१९. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियों का कथन करना चाहिए। दं. २०. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का कथन नैरयिकों के समान है। विशेष-यह औदारिकशरीरकायप्रयोगी भी होता है तथा औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी होता है। १. अथवा कोई एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होता है, २. अथवा बहुत से कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं। प्र. दं. २१. भन्ते ! सभी मनुष्य क्या सत्यमनःप्रयोगी यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं ? उ. गौतम ! सभी मनुष्य सत्यमनःप्रयोगी यावत् औदारिक शरीरकायप्रयोगी भी होते हैं, वैक्रियशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं और वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं। १. अथवा कोई एक औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है, २. अथवा अनेक (मनुष्य) औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं, ३. अथवा कोई एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, ४. अथवा अनेक आहारकशरीरकायप्रयोगी होते हैं, ५. अथवा कोई एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है, ६. अथवा अनेक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं, ६. (६) अहवेगे य आहारगमीसगसरीरकायप्प ओगिणो य, ७. (७) अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगी य, ८. (८) अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य, एए अट्ठ भंगा पत्तेयं। ९. (१) अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकाय ओगी य, आहारगसरीरकायप्पओगी य, ७. अथवा कोई एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होता है, ८. अथवा अनेक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं। इस प्रकार एक-एक के संयोग से अर्थात् असंयोगी ये आठ भंग होते हैं। ९. (१) अथवा कोई एक (मनुष्य) औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगी और एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, १०. (२) अथवा एक औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है और अनेक आहारकशरीरकायप्रयोगी होते हैं, १०. (२) अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य,आहारगसरीरकायप्पओगिणो य, .
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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