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________________ प्रयोग अध्ययन ५४९ प. दं.२१. मणूसाणं भंते ! कइविहे पओगे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते,तं जहा १. सच्चमणप्पओगे जाव १५.कम्मगसरीरकायप्पोगे।' दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं। -पण्ण. प. १६, सु. १०७०, १०७६ ३. जीव-चउवीसदंडएसुपओगभंगाणं परूवणंप. जीवा णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव किं कम्मगसरीरकायप्पओगी? उ. गोयमा ! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगी वि जाव वेउव्वियमीसगसरीरकायप्पओगी वि कम्मगसरीरकायप्पओगी वि। १. अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य, २. अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य, ३. अहवेगे य आहारगमीसगसरीरकायप्पओगी य, ४. अहवेगे य आहारगमीसगसरीरकायप्पओगिणो य, चउभंगो, ५. अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसगसरीरकायप्पओगी य, ६. अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य, आहारगमीसगसरीरकायप्पओगिणो य, ७. अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य, आहारगमीसगसरीरकायप्पओगी य, ८. अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पोगिणो य, आहारगमीसगसरीरकायप्पओगिणो य, एए जीवाणं अट्ठ भंगा। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगी जाव कि कम्मगसरीरकायप्पओगी? उ. गोयमा ! णेरइया सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगी वि जाव असच्चामोसवइप्पओगी, वेउव्वियमीसगसरीरकायप्पओगी वि,तं जहा- . १. अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगी य, प्र. दं. २१. भन्ते ! मनुष्यों के प्रयोग कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनके प्रयोग पन्द्रह प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सत्यमनःप्रयोग यावत् १५. कार्मणशरीरकाय प्रयोग। द. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के प्रयोग नैरयिकों के समान समझना चाहिए। ३. जीव-चौबीसदंडकों में प्रयोग भंगों का प्ररूपणप्र. भन्ते ! जीव सत्यमनःप्रयोगी होते हैं यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं? उ. गौतम ! जीव सभी सत्यमनःप्रयोगी भी होते हैं यावत् वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी एवं कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं। १. अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, २. अथवा बहुत से आहारकशरीरकायप्रयोगी होते हैं, ३. अथवा एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है, ४. अथवा बहुत से आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं, ये चार भंग हुए। ५. अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, ६. अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत से आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, ७. अथवा बहुत से आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, ८. अथवा बहुत से आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत से ___ आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं। ये समुच्चय जीवों के आठ भंग हुए। प्र. द.१. भन्ते ! क्या नैरयिक सत्यमनःप्रयोगी होते हैं यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं? उ. गौतम ! नैरयिक सभी सत्यमनःप्रयोगी भी होते हैं यावत् असत्यामृषा वचनप्रयोगी भी होते हैं, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं, यथा१. अथवा कोई एक (नैरयिक) कार्मणशरीरकायप्रयोगी होता है, २. अथवा बहुत से (नैरयिक) कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं। द.२-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीव क्या औदारिकशरीरकायप्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकाय प्रयोगी हैं या कार्मणशरीरकायप्रयोगी हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव औदारिकशरीरकायप्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी हैं और कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी हैं। २. अहवेगे य कम्मगसरीरकायप्पओगिणो य, दं.२-११.एवं असुरकुमारा विजाव थणियकुमारा वि। प. दं. १२. पुढविकाइया णं भंते ! कि ओरालियसरीरकायप्पओगी ओरालियमीसग सरीर कायप्पओगी कम्मगसरीरकायप्पओगी? उ. गोयमा ! पुढविकाइया णं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि, ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी वि, कम्मगसरीर कायप्पयओगी वि। १. सम.सम.१५,सु.७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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