SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 650
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ५४३ ) ५४३ काययोगी का जघन्य अन्तर एक समय का उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त का है। अयोगी का अन्तर नहीं है। २८. योग की अपेक्षा अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! सयोगी, मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत विशेषाधिक है ? योग अध्ययन कायजोगिस्स जहण्णेणं अंतरं एक्कं समय, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, अजोगिस्स नत्थि अंतरं। -जीवा. पडि. ९, सु. २४४ २८. जोगवेक्खया अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! जीवाणं सजोगीणं, मणजोगीणं, वह जोगीणं, कायजोगीणं, अजोगीण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा जीवा मणजोगी, २. वइजोगी असंखेज्जगुणा, ३. अजोगी अणंतगुणा, ४. कायजोगी अणंतगुणा, ५. सजोगी विसेसाहिया। -पण्ण.प.३,सु.२५२ २९. पण्णरसविह जोगाणं अप्प-बहुतंप. एयस्स णं भंते ! पण्णरसविहस्स जहण्णुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवे कम्मासरीरस्स जहण्णए जोए, २. ओरालियमीसगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, ३. वेउव्वियमीसगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, ४. ओरालियसरीरस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, ५. वेउव्वियसरीरस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, उ. गौतम ! १. सबसे अल्प जीव मनोयोग वाले हैं। २. (उनसे) वचनयोग वाले जीव असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) अयोगी अनन्तगुणे हैं, ४. (उनसे) काययोगी अनन्तगुणे हैं, ५. (उनसे) सयोगी विशेषाधिक हैं। २९. पन्द्रह प्रकार के योगों का अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! इन पन्द्रह प्रकार के योगों में कौन-सा योग किस योग से, जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा से अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. कार्मण शरीर का जघन्य काययोग सबसे अल्प है, २. (उससे) औदारिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, ३. (उससे) वैक्रियमिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। ४. (उससे) औदारिक शरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ५. (उससे) वैक्रियशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ६. (उससे) कार्मणशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। ७. (उससे) आहारकमिश्र का जघन्य योग असंख्यात गुणा है, ८. (उससे) आहारकमिश्र का उत्कृष्ट योग . असंख्यातगुणा है, ९.१०. (उससे) औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र इन दोनों का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है और दोनों परस्पर तुल्य हैं, ११. (उससे) असत्यामृषामनोयोग का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, १२. (उससे) आहारकशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, १३-१९. (उससे) तीनों प्रकार का मनोयोग, चार प्रकार का वनचयोग, इन सातों का जघन्य योग परस्पर तुल्य और - असंख्यातगुणा है, ६. कम्मासरीरस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे। ७. आहारगमीसगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, ८. आहारगमीसगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, ९-१०. ओरालियमीसगस्स वेउव्वियमीसगस्स य एएसि णं उक्कोसए जोए दोण्ह वि तुल्ले असंखेज्जगुणे, ११. असच्चामोसमणजोगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, १२. आहारगसरीरस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, १३-१९. तिविहस्स मणजोगस्स चउव्विहस्स वइजोगस्स एएसि णं सत्तण्ह वि तुल्ले जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे, १. जीवा. पडि. ९ सु. २४४ २. जीवा. पडि.९सु.२४४
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy