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________________ ५४४ २०. आहारगसरीरस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, द्रव्यानुयोग-(१) २०. (उससे) आहारकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, २१-३०. (उससे) औदारिक शरीर, वैक्रियशरीर, चार प्रकार का मनोयोग, चार प्रकार का वचन योग २१-३०. ओरालियसरीरस्स, वेउव्वियसरीरस्स, चउव्विहस्स य मणजोगस्स, चउव्विहस्स य वइजोगस्सएएसि णं दसण्ह वि तुल्ले उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे। -विया. स. २५, उ.१, सु.९ ३०.पणिहाणस्स भेया चउवीसदंडएसु य परूवणं प. कइविहे णं भंते ! पणिहाणे पन्नते? उ. गोयमा ! तिविहे पणिहाणे पन्नत्ते,तं जहा १.मणपणिहाणे, २. वइ पणिहाणे, ३. कायपणिहाणे। प. द.१. नेरइयाणं भंते ! कइविहे पणिहाणे पन्नते? उ. गोयमा ! एवं चेव। दं.२-११.एवं जाव थणियकुमाराणं। प. दं.१२.पुढविकाइयाणं भंते ! कइविहे पणिहाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! एगे कायपणिहाणे पन्नते। दं.१३-१६.एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। प. द.१७.बेइंदियाणं भंते ! कइविहे पणिहाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पणिहाणे पन्नते, तं जहा १. वइपणिहाणे य, २. कायपणिहाणे य। दं.१८-१९. एवं तेइंदियाणं चउरिदियाण वि। इन दस का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है। ३०. प्रणिधान के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! प्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! प्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. मनःप्रणिधान, २. वचन प्रणिधान ३. काय प्रणिधान। प्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिकों के कितने प्रकार का प्रणिधान कहा गया है? उ. गौतम ! पूर्ववत् (तीनों प्रणिधान) है, दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने प्रकार का प्रणिधान कहा गया है? उ. गौतम ! एकमात्र काय प्रणिधान होता है। दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार का प्रणिधान कहा गया है? उ. गौतम ! दो प्रकार का प्रणिधान कहा गया है, यथा. १. वचन प्रणिधान २. काय प्रणिधान। द. १८-१९. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जीवों के लिए कहना चाहिए। दं. २०-२४. वैमानिकों पर्यन्त शेष दंडकों में तीनों प्रकार के प्रणिधान होते हैं। ३१. दुःप्रणिधान और सुप्रणि धान के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपणप्र. भन्ते ! दुष्प्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! दुष्प्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. मनो दुष्प्रणिधान २. वचन दुष्प्रणिधान ३. काय । दुष्प्रणिधान। जिस प्रकार दण्डकों में प्रणिधान के लिए कहा उसी प्रकार दुष्प्रणिधान के लिए भी जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! सुप्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! सुप्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. मनःसुप्रणिधान, २. वचन सुप्रणिधान, ३. काय सुप्रणिधान। प्र. भन्ते ! मनुष्यों के कितने प्रकार का सुप्रणिधान कहा गया है ? . दं.२०-२४.सेसाणं तिविहे वि जाय वेमाणियाणं। -विया. स. १८, उ.७, सु. १२-१९ ३१. दुप्पणिहाणस्स-सुप्पणिहाणस्स भेया-चउवीसदंडएसु य परूवणंप. कइविहे णं भंते ! दुप्पणिहाणे पण्णते? उ. गोयमा ! तिविहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते,तं जहा १. मणदुप्पणिहाणे २. वइदुप्पणिहाणे, ३. काय दुप्पणिहाणे, जहेव पणिहाणेणं दंडओ भणिओ तहेव दुप्पणिहाणेण वि भाणियव्यो। प. कइविहे णं भंते ! सुप्पणिहाणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा १. मणसुप्पणिहाणे, २. वइसुप्पणिहाणे, ३. कायसुप्पणिहाणे।२ प. मणुस्साणं भंते ! कइविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते? भंते ! सुपापण्णते, तहाणे, ३. १. ठाणं.अ.३,उ.१,सु.१४७ २. ठाणं.अ.३,उ.१.सु.१४७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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