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________________ ५४१ १८ प्रकारान्तर से वचन के तीन प्रकार वचन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. एकवचन, २. द्विवचन, ३. बहुवचन। अथवा वचन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्रीवचन २. पुरुषवचन ३. नपुंसकवचन। अथवा वचन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अतीतवचन, २. प्रत्युत्पन्नवचन, ३. अनागतवचन। १९. काया के सात भेद प्र. भन्ते ! काया कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! काया सात प्रकार की कही गई है, यथा १. औदारिक, २. औदारिकमिश्र, ३. वैक्रिय, ४. वैक्रियमिश्र, ५. आहारक, ६. आहारकमिश्र, ७. कार्मण। २०. काया में आत्मत्व-अनात्मत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! काया आत्मा है या अनात्मा है? उ. गौतम ! काया आत्मा भी है और आत्मा से भिन्न भी है। योग अध्ययन १८. पगारान्तरेण वयण तिविहत्तं तिविहे वयणे पण्णत्ते,तं जहा१.एगवयणे, २. दुवयणे, ३. बहुवयणे। अहवा तिविहे वयणे पण्णत्ते,तं जहा१.इत्थिवयणे, २.पुमवयणे,३. नपुंसगवयणे। अहवा तिविहे वयणे पण्णत्ते,तं जहा१.तीतवयणे, २. पडुप्पन्नवयणे, ३.अणागयवयणे। -ठाण. अ.३ उ.४,सु.१९८ १९. कायस्स भेयसत्तगं प. कइविहे णं भंते ! काये पण्णत्ते? उ. गोयमा ! सत्तविहे काये पण्णत्ते,तं जहा १. ओरालिए,२.ओरालियमीसए, ३. वेउव्विए, ४. वेउव्वियमीसए, ५. आहारए, ६.आहारगमीसए, ७. कम्मए। -विया. स.१३, उ.७, सु.२२ २०. कायस्स अत्तत्ताणत्तत्त परूवणं प. आया भंते ! काये? अन्ने काये? उ. गोयमा ! आया विकाये, अन्ने वि काये। -विया.स.१३, उ.७,सु.१५ २१. कायस्स रूवित्तारूवित्त परूवणं प. रूविं भंते ! काये? अन्ने काये? उ. गोयमा ! रूविं पिकाये, अरूविं पिकाये। -विया.स. १३, उ.७.सु.१६ २२. कायस्स सचित्ताचित्तत्त परूवणं प. सचित्ते भंते ! काये, अचित्ते काये? उ. गोयमा ! सचित्ते विकाये,अचित्ते विकाये। -विया. स. १३, उ.७,सु.१७ २३. कायस्स जीवत्ताजीवत्तरूव परूवणं प. जीवे भंते !काये? अजीवे काये? उ. गोयमा ! जीवे वि काये, अजीवे वि काये। प. जीवाणं भंते ! काये? अजीवाणं काये। उ. गोयमा ! जीवाण विकाये,अजीवाण वि काये। -विया. स.१३,उ.७,सु.१८-१९ २४. जीवकायसंबंधाइ परूवणंप. पुव्विं भंते ! काये? कायिज्जमाणेकाये? कायसमयवीइक्कंते काये? २१. काया में रूपित्व-अरूपित्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! काया रूपी है या अरूपी है? उ. गौतम ! काया रूपी भी है और अरूपी भी है। २२. काया में सचित्तत्व-अचित्तत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! काया सचित्त है या अचित्त है? उ. गौतम ! काया सचित्त भी है और अचित्त भी है। २३. काया में जीवत्व-अजीवत्व रूप का प्ररूपण प्र. भन्ते ! काया जीव रूप है या अजीव रूप है? उ. गौतम ! काया जीव रूप भी है और अजीव रूप भी है। प्र. भन्ते ! काया जीवों के होती है या अजीवों के होती है? उ. गौतम ! काया जीवों के भी होती है और अजीवों के भी होती है। २४. जीव से काया के सम्बन्धादि का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या (जीव का सम्बन्ध होने से) पूर्व काया होती है? कायिक पुद्गलों का ग्रहण करते समय काया होती है ? या काया समय (कायिक पुद्गलों के ग्रहण का समय) बीत जाने पर काया होती है ? उ. गौतम !(जीव का सम्बन्ध होने से) पूर्व भी काया.होती है, कायिक पुद्गलों के ग्रहण करते समय भी काया होती है, काया समय (कायिक पुद्गलों के ग्रहण का समय) बीत जाने पर भी काया होती है। उ. गोयमा ! पुव्विं पिकाये, कायिज्जमाणे वि काये, कायसमयवीइक्कंते वि काये।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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