SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४० द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! मन सचित्त नहीं है किन्तु अचित्त है। १३. मन के अजीवत्य का प्ररूपण प्र. भन्ते ! मन जीव है या अजीव है? उ. गौतम ! मन जीव नहीं है किन्तु अजीव है। उ. गोयमा ! नो सचित्ते मणे,अचित्ते मणे। -विया. स. १३, उ.७, सु.११(२) १३. मणस्स अजीवत्त परूवणं प. जीवे भंते ! मणे? अजीवे मणे? उ. गोयमा ! नो जीवे मणे,अजीवे मणे। -विया.स.१३, उ.७,सु.११(३) - १४. अजीवाणं मणणिसेह परूवणं प. जीवाणं भंते ! मणे ? अजीवाणं मणे? उ. गोयमा ! जीवाणं मणे, नो अजीवाणं मणे। -विया. स. १३, उ.७.सु.११(४) १५. मणोदव्वस्स भेयणकाल पलवणंप. पुव्विं भंते ! मणे? मणिज्जमाणे मणे? मणसमयवीइक्कते मणे? उ. गोयमा ! नो पुव्विं मणे, मणिज्जमाणे मणे, नोमणसमयवीइक्कंते मणे। १४. अजीवों के मन निषेध का प्ररूपण प्र. भन्ते ! मन जीवों के होता है या अजीवों के होता है? उ. गौतम ! मन जीवों के होता है, अजीवों के नहीं होता है। प. पुव्विं भंते ! मणे? मणे भिज्जइ, मणिज्जमाणे मणे भिज्जइ, मणसमयवीइक्कते मणे भिज्जइ? उ. गोयमा ! नो पुव्विं मणे भिज्जइ, मणिज्जमाणे मणे भिज्जइ, नो मणसमयवीइक्कते मणे भिज्जइ। -विया. स. १३, उ.७,सु. १२-१३ १६. मणनिव्यत्ति भेया चउवीसदंडएसुय परवणं प. कइविहाणं भंते ! मणनिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चउव्विहा मण निव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा १.सच्चमणनिव्वत्ती जाव४.असच्चामोसमणनिव्वत्ती। एवं एगिंदिय विगलिंदियवजंजाव वेमाणियाणं। -विया. स. १९, उ.८,सु.१७-१८ १७. मण वयणाणं तिरूवत्तं तिविहे मणे पण्णत्ते,तं जहा१.तम्मणे,२.तदन्नमणे, ३.णोअमणे। तिविहे अमणे पण्णत्ते,तं जहा१.णोतम्मणे,२.णोतदन्नमणे, ३.अमणे। तिविहे वयणे पण्णत्ते,तं जहा१.तव्वयणे,२. तदन्नवयणे,३.णोअवयणे। तिविहे अवयणे पण्णत्ते,तं जहा१.णोतव्वयणे,२.णोतदन्नवयणे, ३. अवयणे। -ठाणं. अ.३, उ.१,सु.१८१ १५. मनोद्रव्य के भेदन का प्ररूपणप्र. भन्ते ! मनन से पूर्व मन कहलाता है? मनन के समय मन कहलाता है? या मनन का समय व्यतीत हो जाने पर मन कहलाता है? उ. गौतम ! मनन से पूर्व मन नहीं कहलाता है। मनन करते समय का मन मन कहलाता है। मनन का समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् मन नहीं कहलाता है। प्र. भन्ते ! मनन से पूर्व मन का भेदन होता है? मनन करते हुए मन का भेदन होता है? या मनन का समय व्यतीत हो जाने पर मन का भेदन होता है ? उ. गौतम ! मनन से पूर्व मन का भेदन नहीं होता है। मनन करते समय मन का भेदन होता है। मनन का समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् मन का भेदन नहीं होता है। १६. मननिर्वृत्ति के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! मनोनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? . उ. गौतम ! मनोनिवृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा १. सत्यमनोनिवृत्ति यावत् ४. असत्यामृषा- मनोनिवृत्ति। इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। १७. मन-वचनों की त्रिरूपता मन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. तन्मन, २. तदन्यमन, ३. नोअमन। अमन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नोतन्मन, २. नोतदन्यमन, ३. अमन। वचन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. तद्वचन, २. तदन्यवचन, ३. नोअवचन। अवचन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नोतद्वचन, २. नोतदन्यवचन, ३. अवचन।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy