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________________ ५३४ द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! देव अर्धमागधी भाषा बोलते हैं और बोली जाती हुई वह अर्धमागधी भाषा ही विशिष्ट रूप होती है। उ. गोयमा ! देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति, साविय णं अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी विसिस्सइ। -विया. स.५, उ.४, सु.२४ ३०.सक्किंदस्स सावज्जाणवज्ज भासाप. सक्के णं भंते ! देविंदे देवराया किं सच्चं भासं भासइ, मोसं भासं भासइ, सच्चामोसं भासं भासइ, असच्चामोसं भासं भासइ? उ. गोयमा ! सच्चं पि भासं भासइ जाव असच्चामोसं पि भासं भासइ। प. सक्के णं भंते ! देविंद देवराया किं सावज्जं भासं भासइ, अणवज्जं भासं भासइ? उ. गोयमा ! सावज्ज पि भासं भासइ, अणवज्ज पि भासं भासइ। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "देविंदे देवराया सक्के सावज्ज पि भासं भासइ, अणवज्ज पि भासं भासइ?" उ. गोयमा ! जाहे णं सक्के देविंदे देवराया सुहुमकायं अनिज्जूहित्ताणं भासं भासइ, ताहे णं सक्के देविंदे देवराया सावज भासं भासइ, जाहे णं सक्के देविंदे देवराया सुहुमकायं निज्जूहित्ताणं भासं भासइ, ताहे सक्के देविंदे देवराया अणवज्ज भासं भासइ। से तेणट्टेणं गोयमा !एवं वुच्चइ"देविंदे देवराया सक्के सावज पि भासं भासइ अणवज्ज पि भासं भासइ।" -विया. स. १६, उ. २, सु.१४-१५ ३१. अन्नउत्थियाणं केवलिस्स भासपरूवणपरिहारो प. अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति ३०. शक्रेन्द्र की सावध निरवद्य भाषाप्र. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सत्य भाषा बोलता है, मृषा भाषा बोलता है, सत्यामृषा भाषा बोलता है, अथवा असत्यामृषा भाषा बोलता है? उ. गौतम ! वह सत्य भाषा भी बोलता है यावत् असत्यामृषा भाषा भी बोलता है। प्र. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सावध भाषा बोलता है या निरवध भाषा बोलता है? उ. गौतम ! वह सावध भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है। प्र. भन्ते ! किस कारण से कहा जाता है कि "देवेन्द्र देवराज शक्र सावध भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है?" उ. गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र सूक्ष्मकाय की रक्षा किये बिना (अथवा मुँह ढंके बिना) बोलता है, तब देवेन्द्र देवराज शक्र सावध भाषा बोलता है, जब देवेन्द्र देवराज शक्र सूक्ष्मकाय की रक्षा के लिए हाथ या वस्त्र से मुख को ढककर बोलता है, तब देवेन्द्र देवराज शक्र निरवद्य भाषा बोलता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"देवेन्द्र देवराज शक्र सावध भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है।" ३१. अन्यतीर्थकों द्वारा केवली भाषा की प्ररूपणा का परिहारप्र. भन्ते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं किकेवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं और जब केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं तब वे कभी-कभी दो प्रकार की भाषाएँ बोलते हैं, यथा१. मृषाभाषा, २. सत्यामृषाभाषा। हे भन्ते ! ऐसा कैसे हो सकता है? उ. गौतम ! अन्यतीर्थिकों ने यावत् जो इस प्रकार कहा है वह उन्होंने मिथ्या कहा है। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि-"केवली यक्षाविष्ट होते ही नहीं है। केवली न यक्षाविष्ट होते हैं और न वे कभी दो भाषायें बोलते हैं, यथा१. मृषा भाषा २. सत्यामृषा भाषा। केवली जब भी बोलते हैं तो दूसरों को उपघात न करने वाली असावद्य भाषाएँ बोलते हैं, यथा१. सत्यभाषा, २. असत्यामृषाभाषा। एवं खलु केवली जक्खाएसेणं आइस्सइ, एवं खलु केवली जक्खाएसेणं आइठे समाणे आहच्च दो भासाओ भासइ, तं जहा१.मोसं वा,२.सच्चामोसं वा। से कहमेयं भंते ! एवं? उ. गोयमा ! जणं ते अन्नउत्थिया जाय जे ते एवमाहंसु मिच्छे ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-नो खलु केवली जक्खाएसेणं आइस्सइ, नो खलु केवली जक्खाएसेणं आइठे समाणे आहच्च दो भासाओ भासइ,तं जहा१. मोसं वा,२. सच्चामोसं वा। केवली णं असावज्जाओ अपरोवघाइयाओ आहच्च दो भासाओ भासइ,तं जहा१.सच्चं वा,२.असच्चामोसं वा। -विया.स.१८,उ.७.सु.२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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