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________________ ५३२ द्रव्यानुयोग-(१) (एकेन्द्रियों को छोड़कर) नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त जिसके जितने करण हों वे सब कहने चाहिए। (एगिदियवज्ज) नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं जस्स जा अत्थितं तस्स सव्वं भणियव्वं। -विया. स.१९, उ.९, सु.८ २४. जीव-चउवीसदंडएसुभासगाभासगत्त परूवणं प. जीवाणं भंते ! किं भासगा, अभासगा? उ. गोयमा !जीवा भासगा वि,अभासगा वि। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जीवा भासगा वि, अभासगा वि?" उ. गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. संसारसमावण्णगा य,२.असंसारसमावण्णगा य। १. तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा, सिद्धाणं अभासगा। २. तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णगा ते णं दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सेलेसिपडिवण्णगाय,२.असेलेसिपडिवण्णगा य। १. तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं अभासगा। २. तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. एगिंदिया य, २.अणेगिदिया य। १. तत्थ णं जे ते एगिंदिया ते णं अभासगा। २. तत्थ णं जे ते अणेगिंदिया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. पज्जत्तगा य,२.अपज्जत्तगा य। १. तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं अभासगा। २. तत्थ णंजे ते पज्जत्तगा ते णंभासगा। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "जीवा भासगा वि,अभासगा वि।" प. द.१.नेरइया णं भंते ! किं भासगा,अभासगा? उ. गोयमा ! नेरइया भासगा वि, अभासगा वि। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइया भासगा वि,अभासगा वि?". उ. गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. पज्जत्तगा य,२.अपज्जत्तगाय। १. तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं अभासगा, २. तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा ते णं भासगा। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइया भासगा वि, अभासगा वि।" एवं एगिदियवज्जाणं णिरंतर जाव वेमाणियाणं भाणियव्यंग -पण्ण.प.११,सु.८६७-८६९ २४. जीव-चौबीसदंडको में भाषक-अभाषकत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! जीव भाषक हैं या अभाषक हैं ? उ. गौतम ! जीव भाषक भी हैं और अभाषक भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि- “जीव भाषक भी हैं और अभाषक भी है ?" उ. गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संसारसमापन्नक, २. असंसारसमापन्नक। १. उनमें जो असंसारसमापनक जीव हैं वे सिद्ध हैं और सिद्ध अभाषक होते हैं, २. उनमें जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. शैलेशीप्रतिपन्नक, २. अशैलेशीप्रतिपन्नक। १. उनमें जो शैलेशीप्रतिपन्नक हैं वे अभाषक हैं। २. उनमें जो अशैलेशीप्रतिपन्नक हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. एकेन्द्रिय, २.अनेकेन्द्रिय। १. उनमें से जो एकेन्द्रिय हैं वे अभाषक हैं। २. उनमें से जो अनेकेन्द्रिय हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। १. उनमें से जो अपर्याप्तक हैं वे अभाषक हैं। २. उनमें से जो पर्याप्तक हैं वे भाषक है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "जीव भाषक भी हैं और अभाषक भी हैं।" प्र. द:१. भन्ते ! नैरयिक भाषक हैं या अभाषक हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक भाषक भी हैं और अभाषक भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि "नैरयिक भाषक भी हैं और अभाषक भी हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। १. इनमें जो अपर्याप्तक हैं वे अभाषक हैं, २. इनमें जो पर्याप्तक हैं वे भाषक हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है किनैरयिक भाषक भी हैं और अभाषक भी हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर निरन्तर वैमानिकों पर्यन्त. जान लेना चाहिए। १. ठाणं.अ.२,उ.२,सु. ६९/१० .
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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