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________________ भाषा अध्ययन उ. चुण्णियाभेए जण्णं तिलचुण्णाण वा, मुग्गचुण्णाण वा, मासचुण्णाण वा, पिप्पलिचुण्णाण वा, मिरियचुण्णाण वा, सिंगबेरचुण्णाण वा, चुण्णिायाए भेए भवइ, से तं चुण्णियाभेए। ५३१ उ. चूर्णिका भेद वह है, जो तिल के चूर्णों का, मूंग के चूर्णों का, उड़द के चूर्णों का, पिप्पली के चूर्णों का, काली मिर्च के चूर्णी का, सौंठ के चूर्णों का चूर्णिका से भेद करने पर होता है। यह चूर्णिका भेद का स्वरूप है। प्र. ४. वह अनुतटिका भेद क्या है? उ. अनुतटिकाभेद वह है, जो कूपों के, तालाबों के, हृदों के, नदियों के, बावड़ियों के, पुष्करिणियों के, दीर्घिकाओं के, गुंजालिकाओं के, सरोवरों के, पंक्तिबद्ध सरोवरों के और परस्पर पंक्तिबद्ध सरोवरों के अनुतटिकारूप में भेद होता है। यह अनुतटिका भेद का स्वरूप है। प्र. ५. वह उत्कटिकाभेद क्या है? उ. उत्कटिकाभेद वह है भसूर के, मंगूसों (मूंगफली) के, तिल की फलियों के, मूंग की फलियों के, उड़द की फलियों के अथवा एरण्ड के बीजों के फटने या फाड़ने से जो भेद होता है, वह उत्कटिकाभेद है। यह उत्कटिका भेद का स्वरूप है। २१. भिद्यमान भाषा द्रव्यों का अल्पबहुत्वप्र. भन्ते ! खण्डभेद से, प्रतरभेद से, चूर्णिकाभेद से, अनुतटिकाभेद से और उत्कटिकाभेद से भिदने वाले इन भाषा द्रव्यों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प उत्कटिकाभेद से भिन्न भाषाद्रव्य हैं। प. ४. से किं तं अणुतडियाभेए? उ. अणुतडियाभेए जण्णं अगडाण वा, तलागाण वा, दहाण वा, णदीण वा, वापीण वा, पुक्खरिणीण वा, दीहियाण वा, गुंजालियाण वा, सराण वा, सरपंतियाण वा, सरसरपंतियाण वा, अणुतडियाए भेए भवइ, से तं अणुतडियाभेए। प. ५.से किं तं उक्करियाभेए? उ. उक्करियाभेए जण्णं मूसगाण वा, मगूसाण वा, तिलसिंगाण वा, मुग्गसिंगाण वा, माससिंगाण वा, एरंडबीयाण वा, फुडित्ता उक्करियाए भेए भवइ, से तं उक्करियाभेए। -पण्ण. प.११, सु.८८१-८८६ २१.भिज्जमाणाणंभासा दव्वाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! दव्वाणं खंडाभेएणं पतराभेएणं चुण्णियाभेएणं अणुतडियाभेएणं उक्करियाभेएण य भिज्जमाणाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १ सव्वत्थोवाइं दव्वाई उक्करियाभेएणं भिज्जमाणाई, २. अणुतडियाभेएणं भिज्जमाणाइं अणंतगुणाई, ३. चुणियाभेएणं भिज्जमाणाई अणुंतगुणाई, ४. पतराभेएणं भिज्जमाणाई अणंतगुणाई, ५. खंडाभेएणं भिज्जमाणाई अणंतगुणाई। -पण्ण. प. ११, सु. ८८७ २२. भासाणिव्वत्तीभेया चउवीसदंडएमय परूवणं प. कइविहा णं भंते ! भासानिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चउव्विहा भासानिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा १. सच्चभासानिव्वत्ती, २. मोसभासानिव्वत्ती, ३. सच्चामोसभासानिव्वत्ती, ४. असच्चामोसमासानिव्वत्ती। एवं एगिंदियवज्ज जस्स जा भासा जाव वेमाणियाणं। -विया.स.१९, उ.८,सु.१५-१६ २३. भासाकरणभेया चउवीसदंडएसुय परूवणं प. कइविहा णं भंते ! भासाकरणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउव्विहं भासाकरणे पण्णत्ते,तं जहा १.सच्चभासाकरणे, २. मोसभासाकरणे, ३. सच्चामोसभासाकरणे,४.असच्चामोसभासाकरणे। २.(उनसे) अनुतटिकाभेद से भिन्न भाषा द्रव्य अनन्तगुणे हैं, ३.(उनसे) चूर्णिकाभेद से भिन्न भाषा द्रव्य अनन्तगुणे हैं, ४.(उनसे) प्रतरभेद से भिन्न भाषा द्रव्य अनन्तगुणे हैं, ५.(उनसे) खण्डभेद से भिन्न भाषा द्रव्य अनन्तगुणे हैं। २२. भाषानिवृत्ति के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! भाषानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! भाषानिवृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा १. सत्याभाषानिवृत्ति, २. मृषाभाषानिवृत्ति, ३. सत्यामृषाभाषानिवृत्ति, ४. असत्यामृषाभाषानिवृत्ति। इस प्रकार एकेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त जिसके जो भाषा हो, उसके उतनी भाषानिवृत्ति कहनी चाहिए। २३. भाषाकरण के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! भाषाकरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! भाषाकरण चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. सत्यभाषा करण, २. मृषाभाषा करण, ३. सत्यामृषाभाषाकरण ४. असत्यामृषाभाषा करण।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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