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________________ ५३० १८.भाषा दव्याणं गहण-णिस्सरणं प. जीवेणं भंते !जाई दव्वाई भासत्ताए गहियाई णिसिरइ, द्रव्यानुयोग-(१) १८. भाषा द्रव्यों का ग्रहण और निःसरणप्र. भन्ते ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करके निकालता है, क्या वह उन्हें सान्तर निकालता है या निरन्तर निकालता है? उ. गौतम ! सान्तर निकालता है, निरन्तर नहीं निकालता है। सान्तर निकालता हुआ जीव एक समय में ग्रहण करता है और एक समय में निकालता है। ताई किं संतरं णिसिरइ,णिरंतरं णिसिरइ? उ. गोयम ! संतरं णिसिरइ, णो णिरंतरं णिसिरइ। संतरं णिसिरमाणे एगेणं समएणं गेण्हइ, एगेणं समएणं णिसिरइ, | 0 नि नि नि नि नि नि नि | | ग्र| ग्रग्र ग्र ग्र ग्र| ग्र0 | एएणं गहणं-णिसिरणोवाएणं जहण्णेणं दुसमइयं, उक्कोसेणं असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं गहणणिसिरणोवायं करेइ। -पण्ण. प.११, सु. ८७९ १९.भिण्णाभिण्ण भासादव्वाणं गहण णिसरण परूवणं प. जीवेणं भंते ! जाई दव्वाइं भासत्ताए गहियाई णिसिरइ, ताई किं भिण्णाई णिसिरइ, अभिण्णाई णिसिरइ? उ. गोयमा ! भिण्णाई पिणिसिरइ,अभिण्णाई पि णिसिरइ। जाइं भिण्णाई णिसिरइ, ताई अणंतगुणपरिवुड्ढीए परिवड्ढमाणाई परिवड्ढमाणाई लोयंतं फुसंति। जाइ अभिण्णाई णिसिरइ, ताई असंखेज्जाओ ओगाहणवग्गणाओ गंता भेयमावज्जति, संखेज्जाई जोयणाई गंता विद्धसमागच्छति। -पण्ण.प.११.स.८८० २०. भासा दव्याणं भेयण पगारा प. तेसिणं भंते ! दव्वाणं कइविहे भेए पण्णत्ते? उ. गोयमा !पंचविहे भेए पण्णत्ते,तं जहा १.खंडाभेए,२. पतराभेए,३.चुण्णियाभेए, ४.अणुतडियाभेए,५. उक्करियाभेए। प. १.से किं तं खंडाभेए? उ. खंडाभेए जण्णं अयखंडाण वा, तउखंडाण वा, तंबखंडाण वा, सीसगखंडाण वा, रययखंडाण वा, जायरूवखंडाण वा,खंडएण भेए भवइ,सेत्तं खंडाभेए। इस ग्रहण और निःसरण के उपाय से जघन्य दो समय से उत्कृष्ट असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त तक ग्रहण और निःसरण करता है। १९. भिन्न-अभिन्न भाषा द्रव्यों के ग्रहण निःसरण का प्ररूपणप्र. भन्ते ! जीव भाषा के रूप में गृहीत जिन द्रव्यों को निकालता है तो क्या भिन्नों को निकालता है या अभिन्नों को निकालता है? उ. गौतम ! कोई जीव भिन्नों को निकालता है, कोई जीव अभिन्नों को भी निकालता है। जो जीव भिन्नों को निकालता है, वह भिन्न द्रव्य अनन्तगुणवृद्धि को प्राप्त होते हुए लोकान्त को स्पर्श करता है, जो जीव अभिन्नों को निकालता है, वह अभिन्न द्रव्य असंख्यात अवगाहनवर्गणा तक जाकर भेद को प्राप्त हो जाता है। फिर संख्यात योजनों तक आगे जाकर वह विध्वंस को प्राप्त हो जाता है। २०. भाषा द्रव्यों के भेदन के प्रकार प्र. भन्ते ! उन भाषा द्रव्यों के भेद कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! भेद पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. खण्डभेद, २. प्रतरभेद, ३. चूर्णिकाभेद, ४. अनुतटिकाभेद, ५. उत्कटिका भेद, प्र. १. वह खण्डभेद क्या है? उ. खंडभेद वह है, जो लोहे के खण्डों का, रांगे के खण्डों का, ताम्बे के खण्डों का, शीशे के खण्डों का, चांदी के खण्डों का, अथवा सोने के खण्डों का, खण्ड से भेद करने पर होता है। यह खण्डभेद का स्वरूप है। प्र. ३. वह प्रतरभेद क्या है? उ. प्रतरभेद वह है, जो बांसों का, बेंतों, का, नलों का, केले के स्तम्भों का, अभ्रक के पटलों का प्रतर से भेद करने पर होता है। यह प्रतरभेद का स्वरूप है। प्र. ३. वह चूर्णिका भेद क्या है? प. २.से किं तं पतराभेए? उ. पतराभेए जण्णं वंसाण वा, वेत्ताण वा, णलाण वा, कदलिथंभाण वा, अब्भपडलाण वा, पतरएणं भेए भवइ, से तंपतराभेए। प. ३.से किं तं चुण्णियाभेए?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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