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________________ भाषा अध्ययन णवर-असच्चामोसभासाए विगलिंदिया वि पुच्छिति इमेण अभिलावेणं। प. विगलिंदिए णं भंते ! जाई दव्वाइं असच्चामोसभासत्ताए गेह, ताई किं ठियाई गेण्हइ, अठियाई गेण्हइ ? उ. गोयमा ! जहा ओहियदंडओ। एवं एए एगतपुलेणं दस दंडगा भाणियव्या - पण्ण. प. ११, सु. ८८८-८९१ १७. एगूणवीसदंडएम गहीय भासा दव्वाणं निसिरण रूयंप. जीवे णं भंते! जाई दव्वाई सच्चभासत्ताए गेण्डइ. ताई कि सच्चभासताए णिसिरह ? मोसभासत्ताए णिसिरइ ? सच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ ? असव्यामोसभासत्ताए णिसिरइ ? उ. गोयमा ! सच्चभासत्ताए णिसिरइ, णो मोसभासत्ताए णिसिरइ, णो सच्चामोसभासत्ताए णिसिरह, णो असच्चामोसभासत्ताए णिसिर । एवं एगंदिय-विगलिंदिववज्जो दंडओ जाय बेमाणिए। एवं हुत्ते वि। प. जीवे णं भंते! जाई दव्वाई मोसभासत्ताए गेण्ड, ताइं किं सच्चभासत्ताए णिसिरइ ? मोसभासत्ताए णिसिरइ ? सच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ ? असच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ ? उ. गोयमा ! णो सच्यभासत्ताए निसिरइ, मोसभासत्ताए णिसिरइ. सच्चामोसभासत्ताए णिसिरइ, णो असच्चामोसभासत्ताए णिसिरह एवं सच्चामोसभासताए वि असच्चामोसभासत्ताए वि एवं चेव । नवर- असच्चामोसभासत्ताए पुच्छिज्जति । जाए चैव गेण्ड ताए चैव णिसिरड। विगलिंदिया तहेव एवं एए एगत पुहतेणं अट्ठ दंडगा भाणियव्या । - पण्ण. प. ११, सु. ८९२-८९५ ५२९ विशेष-असत्वामृषाभाषा के ग्रहण के सम्बन्ध में इस अभिलाप के द्वारा विकलेन्द्रियों के लिए भी प्रश्न करना चाहिए। प्र. मनोविकलेन्द्रिय जीव जिन द्रव्यों को असत्यामुषाभाषा के रूप में ग्रहण करता है तो क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है ? उ. गौतम ! जैसे औधिक दंडक कहा गया है वैसे ही यहां समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार एकत्व और पृथक्त्व के ये दस दण्डक कहने चाहिए। १७. उन्नीस दण्डकों में ग्रहीत भाषा द्रव्यों के निःसरण का रूप प्र. भन्ते ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है तो क्या उनको सत्यभाषा के रूप में निकालता है ? मृषाभाषा के रूप में निकालता है? सत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है? या असत्यामुषाभाषा के रूप में निकालता है? उ. गौतम ! वह सत्यभाषा के रूप में निकालता है, किन्तु न तो मृषाभाषा के रूप में निकालता है. न सत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है, और न असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यंत दण्डक कहने चाहिए। इसी प्रकार बहुवचन के दण्डक भी कहने चाहिए। प्र. भन्ते ! जीव जिन द्रव्यों को मृषाभाषा के रूप में ग्रहण करता है तो क्या उन्हें सत्यभाषा के रूप में निकालता है ? मृषाभाषा के रूप में निकालता है ? सत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है ? या असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है ? उ. गौतम ! वह सत्यभाषा के रूप में नहीं निकालता है, मृषाभाषा के रूप में निकालता है, सत्यामृषाभाषा के रूप में नहीं निकालता है और न असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है। इसी प्रकार सत्यामुषाभाषा के लिए भी कहें। इसी प्रकार असत्यामृषाभाषा के द्रव्यों के लिए भी कहें। विशेष असल्यामुषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों के विषय में विकलेन्द्रियों के लिए भी कहना चाहिए। जिस भाषा के रूप में द्रव्यों को ग्रहण करता है, उसी भाषा के रूप में ही द्रव्यों को निकालता है। इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्व के ये आठ दण्डक कहने चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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