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________________ ( ५२२ । १२. भासिज्जमाणी भासा भिज्जइत्ति परूवणं :प. १. पुव्विं भंते ! भासा भिज्जइ? २. भासिज्जमाणी भासा भिज्जइ? ३. भासासमयवीइक्कंता भासा भिज्जइ? उ. गोयमा !१.नो पुव्विं भासा भिज्जइ, २. भासिज्जमाणी भासा भिज्जइ, ३. नो भासासमयवीइक्कंता भासा भिज्जइ। -विया. स. १३, उ.७, सु.८ १३. ओहारिणी भासा परूवर्णप. से णूणं भंते ! मण्णामीति ओहारिणी भासा? चिंतेमीति ओहारिणी भासा? अह मण्णामीति ओहारिणी भासा? अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा? तह मण्णामीति ओहारिणी भासा? तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा? उ. गोयमा ! मण्णामीति ओहारिणी भासा, चिंतेमीति ओहारिणी भासा, अह मण्णामीति ओहारिणी भासा, अह चिंतेमीति ओहारिणी भासा, तह मण्णामीति ओहारिणी भासा, तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा। द्रव्यानुयोग-(१) १२. बोलते समय की भाषा के भेदन का प्ररूपण :प्र. भन्ते ! १. बोलने से पूर्व भाषा का भेदन होता है? २. बोलते समय भाषा का भेदन होता है? ३. बोलने का समय बीत जाने के बाद भाषा का भेदन होता है? उ गौतम ! १. बोलने से पूर्व भाषा का भेदन नहीं होता है, २. बोलते समय भाषा का भेदन होता है, ३. बोलने का समय बीत जाने के पश्चात् भाषा का भेदन नहीं होता है। १३. अवधारिणी भाषा का प्ररूपणप्र. भन्ते ! मैं ऐसा मानता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है? मैं ऐसा चिन्तन करता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है? क्या मैं ऐसा मानूं कि-भाषा अवधारिणी है? क्या मैं ऐसा चिन्तन करूं कि-भाषा अवधारिणी है? उसी प्रकार मैं ऐसा मानता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है? उसी प्रकार में ऐसा चिन्तन करता हूँ कि भाषा अवधारिणी है ? उ. हाँ गौतम ! मैं मानता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है, मैं चिन्तन करता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है, अब भी मैं मानता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है, अब भी मैं चिन्तन करता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है ? उसी प्रकार मैं मानता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है, उसी प्रकार मैं चिन्तन करता हूँ कि-भाषा अवधारिणी है। प्र. भन्ते ! अवधारिणी भाषा क्या सत्य है, मृषा है, सत्यामृषा है, असत्यामृषा (न सत्य, न असत्य) है? उ. हाँ गौतम ! वह सत्य भी होती है, मृषा भी होती है, सत्यामृषा भी होती है और असत्यामृषा भी होती है। . प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि अवधारिणी भाषा सत्य, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा भी होती है? उ. गौतम! १.आराधनी सत्य है, २. विराधनी मृषा है, ३. आराधनी विराधनी सत्यामृषा है, ४. जो न तो आराधनी है, न विराधनी है और न ही आराधनी विराधनी है, वह चौथी असत्यामृषा नाम की भाषा है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"अवधारिणी भाषा सत्य, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा भी होती है।" प. ओहारिणी णं भंते ! भासा किं सच्चा, मोसा, सच्चामोसा, असच्चामोसा? .. उ. गोयमा ! सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ “ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा? उ. गोयमा ! १.आराहणी सच्चा, २.विराहणी मोसा, ३.आराहणविराहणी सच्चामोसा, ४. जा व आराहरणी व विराहणी णेव आराहणविराहणी, असच्चामोसा णाम सा चउत्थी भासा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं युच्चइ"ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा।" -पण्ण.प.११,सु.८३०-८३१ १४. पण्णवणी भासा पसवणंप. अह भंते ! गाओ, मिया, पसू, पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा? ण एसा भासा मोसा? १४. प्रज्ञापनी भाषा की प्ररूपणाप्र. भन्ते ! गायें, मृग, पशु, पक्षी क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है? यह भाषा मृषा तो नहीं है?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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