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________________ इन्द्रिय अध्ययन उ. गोयमा ! अणंता। एवं जाव गेवेज्जगदेवते। प. णेरइयाणं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता? उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया बद्धेल्लगा। उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! असंखेज्जा। एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि। एवं जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणणेयव्व। णवर-वणफइकाइयाणं विजय-वेजयंत-जयंतअपराजिय देवत्ते सव्वट्ठ-सिद्धगदेवत्ते य पुरेक्खडा अणंता। सव्वेसिं मणूस-सब्वट्ठसिद्धगवज्जाणं सट्ठाणे बद्धेल्लगा असंखेज्जा, परट्ठाणे बद्धेल्लगाणत्थि। वणस्सइकाइयाणं सट्ठाणे बद्धेल्लगा अणंता। मणुस्साणं णेरइयत्ते अतीता अणंता, बद्धेल्लगा णस्थि, पुरेक्खडा अणंता। एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। णवर-सट्ठाणे अतीता अणंता, बद्धेल्लगा सिय संखेज्जा,सिय असंखेज्जा, पुरेक्खडा अणंता। प. मणूसाणं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता? उ. गोयमा ! संखेज्जा। प. केवइया बद्धेल्लगा? उ. गोयमा !णत्थि। प. केवइया पुरेक्खडा? उ. गोयमा ! सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्तेवि। वाणमंतर-जोइसियाणं जहाणेरइयाणं। उ. गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देव पर्याय पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! नैरयिकों की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धदेव रूप में द्रव्येन्द्रियां कहनी चाहिए। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिकों पर्यंत आलापक जानना चाहिए। विशेष-वनस्पतिकायिकों की, विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव के रूप में तथा सर्वार्थसिद्धदेव के रूप में पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां अनन्त हैं। मनुष्यों और सर्वार्थसिद्धदेवों को छोड़कर सबकी स्वस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियां असंख्यात हैं, परस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियां नहीं हैं। वनस्पतिकायिकों की स्वस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियां अनन्त हैं। मनुष्यों की नैरयिक के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां अनन्त हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियां नहीं हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां अनन्त हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयकदेवों पर्याय पर्यन्त द्रव्येन्द्रियां हैं। विशेष-स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियां अनन्त हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियां संख्यात भी हैं और असंख्यात भी हैं पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां अनन्त हैं। प्र. भन्ते ! मनुष्यों की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेव के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! संख्यात हैं। प्र. बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम ! नहीं हैं। प्र. पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? उ. गौतम! कदाचित् संख्यात भी हैं और असंख्यात भी हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धदेव के रूप में भी समझना चाहिए। वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। सौधर्म देवों की अतीतादि इन्द्रियों का कथन इसी प्रकार है। विशेष-विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजितदेव के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियां असंख्यात हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियां नहीं हैं तथा पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां असंख्यात हैं। सर्वार्थसिद्धदेव रूप में अतीत नहीं हैं, बद्ध नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां असंख्यात हैं। इसी प्रकार ईशान देवलोक से ग्रैवेयकदेवों पर्यन्त का सम्पूण कथन करना चाहिए। सोहम्मगदेवाणं एवं चेव। णवर-विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते अतीता असंखेज्जा, बद्धेल्लगा णत्थि। पुरेक्खडा असंखेज्जा। सबट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि, बद्धेल्लगा णस्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा। एवं ईसाणस्स जाव गेवेज्जगदेवाणं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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