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________________ विकुर्वणा अध्ययन नीलग पोग्गलं वा कालगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे। नीलगं पोग्गलं वा परियाइत्ता पभू जाव कालगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए । प. असंबुडे णं भंते! अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू निद्धपोग्गलं लुक्खपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ? लुक्खपोग्गलं निद्धपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, परियाइत्ता पभू । प. से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेइ ? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेड ? अण्णत्थगए पोग्गले परिवाइता परिणामेह ? उ. गोयमा ! इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेइ, णो तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेइ, णो अण्णत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेइ । -विया. स. ७, उ. ९, सु. १-४ १६. चोदसपुब्बिस्स सहस्रूवकरण सामत्य 7 प. पभूणं भंते! चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं पडाओ पडसहस्सं कडाओ कडसहसं रहाओ रहसहस्से, छत्ताओ छत्तसहस्सं दंडाओ दंडसहस्स, अभिनिव्यत्तित्ता उवसेत्तए ? " उ. हंता गोयमा ! पभू । प. से केणट्ठेण भते । एवं बुच्चइ पभू चोदसपुथ्वी घडाओ घडसहस्सं जाव दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वत्तित्ता उवदंसेत्तए ? उ. गोयमा ! चउद्दसपुव्विस्स णं अणंताई दव्बाई उक्करियाभेएणं भिज्जमाणाई लद्धाई पत्ताई अभिसमन्नागयाइं भवंति । से तेणद्वेण गोयमा ! एवं युच्चद्दपभू चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं जाव दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्यत्तित्ता उवदंसेत्तए । - विया. स. ५, उ. ४, सु. ३६ १७. भावियप्पा अणगारस्स ओगहणं सामत्थं प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? उ. हंता, गोयमा ! ओगाहेज्जा । प. से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? ४५३ 'या नीले पुद्गलों को काले पुद्गलों के रूप में परिणमन करने में समर्थ है ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके यावत् नीले पुद्गलों को काले पुद्गलों के रूप में परिणमन करने में समर्थ है। प्र. भन्ते असंवृत अनगार बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किए बिना चिकने पुद्गलों को रूखे पुद्गलों के रूप में परिणमन करने में समर्थ है ? या रूखे पुद्गलों को चिकने पुद्गलों के रूप में परिणमन करने में समर्थ है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ( बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके) परिणमन करने में समर्थ है। प्र. भन्ते ! वह असंवृत अनगार यहां रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमन करता है या, वहां रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमन करता है अथवा अन्यत्र रहे पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमन करता है ? उ. गौतम ! वह यहां रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमन करता है, किन्तु न तो वहां रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमन करता है, और न ही अन्यत्र रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमन करता है। १६. चौदहपूर्वी के हजार रूप करने का सामर्थ्य प्र. भंते ! क्या चतुर्दशपूर्वधारी एक घड़े में से हजार घड़े, एक वस्त्र में से हजार वस्त्र, एक कट (चटाई) में से हजार कट, एक रथ में से हजार रथ, एक छत्र में से हजार छत्र और एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ है ? उ. हाँ, गौतम ! वे ऐसा करके दिखलाने में समर्थ हैं। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि चतुर्दशपूर्वधारी एक घट में से हजार घट यावत् एक दण्ड में से हजार दण्ड दिखलाने में समर्थ हैं ? उ. गौतम ! चतुर्दशपूर्वधारी ने उत्करिका भेद द्वारा भेदे जाते हुए अनन्त द्रव्यों को लब्ध किया है तथा अभिसमन्वागत किया है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है किचतुर्दशपूर्वधारी एक घट में से हजार घट यावत् एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ है। १७. भावितात्मा अनगार का अवगाहन सामर्थ्य प्र. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार (वैक्रियलब्धि के सामर्थ्य से ) तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार पर रह सकता है ? उ. हाँ, गौतम ! वह रह सकता है। प्र. क्या वह वहां छिन्न या भिन्न होता है ?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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