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________________ ४४९ विकुर्वणा अध्ययन प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू असिचम्मपाय-हत्थकिच्चगयाई रूवाई विउव्वित्तए? उ. गोयमा ! से जहानामए जुवइ जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, तं चेव जाव नो विकुव्विंसु वा, विकुव्वंति वा, विकुव्विस्संति वा। -विया. स. ३ उ. ५ सु. ४-५ ७. भावियप्पमणगारं पडुच्च पडाग-रूवविउव्वण परूवणं प. से जहानामए केइ पुरिसे एगओपडागं काउंगच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओपडाग हत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता, गोयमा ! उप्पएज्जा। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओपडाग-हत्थकिच्चगयाई रूवाई विकुवित्तए? प्र. भन्ते ! भावितात्मा अनगार, कार्यवश तलवार एवं ढाल हाथ में लिए हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है? उ. गौतम ! जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है यावत् यहाँ सब पूर्ववत् कहना चाहिये। परन्तु इतने वैक्रियकृत रूप बनाए नहीं, बनाता नहीं और बनाएगा भी नहीं। ७. भावितात्मा अनगार द्वारा पताका लिए हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपणप्र. जैसे कोई पुरुष एक हाथ में पताका लेकर गमन करता है, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? उ. हाँ, गौतम ! वह आकाश में उड़ सकता है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अनगार, कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है? उ. गौतम ! यहां सब पहले की तरह कहना चाहिए यावत् इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इसी तरह दोनों ओर पताका लिए हुए पुरुष के जैसे रूपों की - विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए। ८. भावितात्मा अनगार द्वारा यज्ञोपवीत धारण किए हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपणप्र. जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवीत धारण करके चलता है, उ. गोयमा ! एवं चेव जाव नो विकुव्विंसु वा, विकुवंति वा, विकुव्विस्संति वा। एवं दुहओपडागं पि। -विया. स.३, उ.५, सु.६-७ ८. भावियप्पमणगार पडुच्च जण्णोवइत्त-रूवविउव्वण परूवणं- प. से जहानामए केइ पुरिसे एगओ जण्णोवइत्तं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओ जण्णोवइत्तकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता, गोयमा ! उप्पएज्जा। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओजण्णोवइत्तकिच्चगयाई रूवाई विकुव्वित्तए? उ. गोयमा ! एवं चेव जाव नो विकुब्बिसु वा, विकुब्वंति वा, विकुव्विस्संति वा। क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किए हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह आकाश में उड़ सकता है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किए हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है? उ. गौतम ! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए यावत् इतने रूपों की विकुर्वणा कभी की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवीत धारण किए हुए पुरुष की तरह रूपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। ९. भावितात्मा अनगार द्वारा पल्हथी मार कर बैठे हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपणप्र. जैसे कोई पुरुष, एक तरफ पल्हथी मार कर बैठे, एवं दुहओजण्णोवइयंपडागं पि। -विया. स.३, उ.५, सु.८९ ९. भावियप्पमणगारं पडुच्च पल्हत्थियं रूवविउब्वणपरूवणं- प. से जहानामए केइ पुरिसे एगओपल्हत्थियं काउं चिठेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओपल्हत्थिय किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. गोयमा ! तं चेव जाव नो विकुव्विंसु वा, विकुव्वंति वा, विकुव्विस्संति वा। क्या इसी तरह भावितात्मा अनगार भी एक पल्हथी लगाये हुए उस पुरुष के जैसे स्वयं आकाश में उड़ सकता है ? उ. गौतम ! पहले कहे अनुसार जानना चाहिए; यावत् इतने विकुर्वित रूप कभी बनाए नहीं, बनाता नहीं और बनाएगा भी नहीं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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