SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( द्रव्यानुयोग-(१) ४४८ प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा पलंघेत्तए वा? प्र. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार, बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके क्या वैभारगिरि को लांघने में समर्थ है ? उ. हता, गोयमा !पभू। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता जावइयाई रायगिहे नगरे रूवाइं एवइयाई विकुव्वित्ता वेभारं पव्वयं अंतो अणुप्पविसित्ता पभू समं वा विसमं करेत्तए? विसमं वा समं करेत्तए? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। एवं चेव बिइओ वि आलावगो। णवर-परियातित्ता पभू। -विया. स. ३, उ. ४, सु. १५-१८ ५. भावियप्पमणगारं पडुच्च इथिरुव-विउव्वणपरूवणं- प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विकुवित्तए? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विकुवित्तए? उ. हता,गोयमा ! पभू। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू इत्थिरूवाई विकुवित्तए? उ. गोयमा ! से जहानामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा ! अणगारे णं भावियप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थीरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं जाव करेत्तए। एस णं गोयमा ! अणगारस्स भावियप्पणो अयमेवारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा, विकुव्वंति वा, विकुव्विस्संति वा। उ. हाँ, गौतम ! वह समर्थ है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अणगार बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना राजगृह नगर में जितने भी रूप हैं, उतने रूपों की विकुर्वणा करके तथा वैभारपर्वत में प्रवेश करके क्या सम पर्वत को विषम कर सकता है ? अथवा विषम पर्वत को सम कर सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी तरह दूसरा आलापक भी कहना चाहिए। विशेष-बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा आदि कर सकता है। ५. भावितात्मा अनगार द्वारा स्त्रीरूप के विकुर्वण का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके एक बड़े स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है? उ. हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अनगार, कितने स्त्रीरूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है? उ. गौतम ! जैसे कोई युवक, अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है, अथवा जैसे चक्र की धुरी आरों से व्याप्त होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय समुद्घात से समवहत होकर यावत् सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप को, बहुत-से स्त्रीरूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण यावत् कर सकता है। हे गौतम ! भावितात्मा अनगार का यह और इस प्रकार विषय है, व विषयमात्र कहा गया है। उसने इतनी वैक्रिय शक्ति सम्प्राप्त होने पर भी कभी इतनी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इस प्रकार की परिपाटी से स्यन्दमानिका-सम्बन्धी रूप विकुर्वणा करने पर्यंत कहना चाहिए। ६. भावितात्मा अनगार द्वारा ढाल-तलवार हाथ में लिए हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपणप्र. जैसे कोई युवक ढाल और तलवार हाथ में लेकर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार भी ढाल-तलवार हाथ में लिए हुए किसी कार्यवश स्वयं आकाश में उड़ सकता है? उ. हाँ, वह आकाश में उड़ सकता है। एवं परिवाडीए नेयव्वंजाव संदमाणिया। -विया. स. ३, उ.५ सु.१-३ ६. भावियप्पमणगारं पडुच्च असिचम्म पाय हत्थकिच्चगय- रूवविउव्वण परूवणंप. से जहानामए केइ पुरिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव अणगारे णं भावियप्पा असि-चम्म-पाय-हत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? उ. हंता, उप्पएज्जा।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy