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________________ शरीर अध्ययन उ. गोयमा ! एगा मसूरचंदासंठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता। - ४४१ । उ. गौतम ! उनके एक मात्र मसूरचन्द्र-संस्थान-निवृत्ति कही दं.१३-२४. एवं जस्स जं संठाणं जाव वेमाणियाणं। -विया.स.१९,उ.८,सु.२६-३१ ५१. चउवीसदंडएसुजीवाणं संघयणं प. कइविहे णं भंते ! संघयणे पण्णत्ते? उ. गोयमा !छविहे संघयणे पण्णत्ते,तं जहा १. वइरोसभनारायसंघयणे, २. रिसभनारायसंघयणे, ३. नारायसंघयणे, ४. अद्धनारायसंघयणे, ५. खीलियासंघयणे, ६. सेवट्ठसंघयणे। प. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं संघयणी पण्णत्ता? उ. गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी, णेवट्ठी णेव छिरा हारु, जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा, ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति।२ (एवं जाव अहेसत्तमाए।) प दं.२-११.असुरकुमारा णं भंते ! कि संघयणी पण्णता? उ. गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी, दं. १३-२४. इस प्रकार जिसके जो संस्थान हो तदनुसार वैमानिकों पर्यन्त संस्थान निवृत्ति कहनी चाहिए। ५१. चौबीस दण्डकों में जीवों का संहनन प्र. भन्ते ! संहनन कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! संहनन छह प्रकार का कहा गया है, यथा १. वजऋषभनाराच संहनन, २. ऋषभनाराच संहनन, ३. नाराच संहनन, ४. अर्द्धनाराच संहनन, ५. कीलिका संहनन, ६. सेवार्त्त संहनन। प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिक किस संहनन वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! नैरयिकों के इन छह संहननों में एक भी नहीं होता। वे असंहननी होते हैं। उनके न अस्थि होती है, न शिरा और न स्नायु। जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और मन के प्रतिकूल होते हैं। वे असंहनन के रूप में परिणत होते हैं। (इसी प्रकार अधः सप्तम पर्यंत जानना चाहिए।) प्र. दं.२-११.भन्ते ! असुरकुमार किस संहनन वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! असुरकुमारों के इन छह संहननों में से एक भी नहीं होता। वे असंहननी होते हैं। उनके न अस्थि होती है, न शिरा और न स्नायु। जो पुद्गल इष्ट, कान्त, प्रिय, शुभ, मनोज्ञ और मनोनुकूल होते हैं। वे असंहनन के रूप में परिणत होते हैं। स्तनितकुमार पर्यंत के सभी भवनपति देव असंहननी होते हैं। प्र. दं. १२-२०. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीव किस संहनन वाले होते हैं? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के सेवार्त संहनन होता है। इसी प्रकार सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक पर्यंत जानना चाहिए। गर्भव्युक्रान्तिक तिर्यञ्चों के छहों संहनन होते हैं। दं.२१. सम्मूछिम मनुष्यों के सेवात संहनन होता है। गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों के छहों संहनन होते हैं। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के संहनन का कथन असुरकुमार देवों के समान है। णेवट्ठी णेव छिराण्हारु जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा मणाभिरामा, ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति। एवं जाव थणियकुमार त्ति। प. दं. १२-२०.पुढविकाइयाणं भंते ! किं संघयणी पण्णता? उ. गोयमा ! सेवट्टसंघयणी पण्णत्ता,३ एवं जाव संमुच्छिम-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिय त्ति। गब्भवक्कंतिया छव्विहसंघयणी,५ दं.२१. संमुच्छिम-मणुस्सा णं सेवट्टसंघयणी।६ गब्भवक्कंतिय-मणूसा छव्विहे संघयणे पण्णत्ता। दं. २२-२४. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। -सम. सु. १५५/१-४/(प्रकी.) १. ठाणं.अ.६,सु.४९४ २. जीवा. पडि.३ उ.२.सु.८७ जीवा. पडि.१ सु.३२ ३. जीवा. पडि. १सु. १३ (३) ४. जीवा. पडि. १ सु. १४-३०-३५ ५. जीवा. पडि.१सु. ३८-४० ६-७.जीवा. पडि. १ सु. ४१ ८. (क) जीवा. पडि. १ सु. ४२ (ख) जीवा. पडि. ३ सु. २०३ (ई)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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