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से तं अणाणुपुब्बी।से तं संठाणाणुपुव्वी। -अणु. सु. २०५ ४९. चउवीसदंडएसु संठाणाई
प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं संठाणी पण्णत्ता? उ. गोयमा ! हुंडसंठाणी पण्णत्ता।' प. दं.२-११. असुरकुमारा णं भंते! किं संठाणी पण्णत्ता? उ. गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिया पण्णत्ता जाव थणिय
त्तिा
दं.१२. पुढविकायिया मसूरयसंठाणा पण्णत्ता।३ दं.१३.आऊकाइया थिबुयसंठाणा पण्णत्ता।४ दं. १४.तेऊकाइया सूइकलावसंठाणा पण्णत्ता।
दं.१५.वाऊकाइया पडातियासंठाणा पण्णत्ता।६ दं. १६. वणप्फइकाइया णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता।
दं. १७-२०. बेंदिया, तेंदिया, चउरिंदिया, सम्मच्छिमपंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया हुंडसंठाणा पण्णत्ता।८ गब्भवक्कंतिया छव्विहसंठाणा पण्णत्ता। दं.२१. सम्मुच्छिम-मणूसा हुंडसंठाणसंठिया पण्णत्ता।१० गब्भवक्कंतियाणं मणूसाणं छव्विहा संठाणा पण्णत्ता।११ दं. २२-२४. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा
जोइसिया वेमाणिया।१२ -सम. सु. १५५/५-११ ५०. चउवीसदंडएसु संठाणनिव्वत्ति परूवणं
प. कइविहा णं भंते ! संठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! छव्विहा संठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा
१.समचउरंससंठाणनिव्वत्ती जाव ६ हुंडसंठाणनिव्वत्ती।
द्रव्यानुयोग-(१) यह अनानुपूर्वी है। यह संस्थानानुपूर्वी का स्वरूप है। ४९. चौबीस दण्डकों में संस्थान
प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिक किस संस्थान वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे हुण्ड संस्थान वाले कहे गए हैं। प्र. दं.२-११. भन्ते ! असुरकुमार किस संस्थान वाले कहे गये हैं ? उ. गौतम ! वे स्तनितकुमारपर्यन्त समचतुरन संस्थान वाले कहे
गए हैं। दं. १२. पृथ्वीकाय के जीव मसूर-संस्थान वाले कहे गए हैं। दं. १३. अप्काय के जीव स्तिबुक संस्थान वाले कहे गए हैं। दं. १४. तेजस्काय के जीव सूची कलाप संस्थान वाले कहे गए हैं। दं. १५. वायुकाय के जीव पताका संस्थान वाले कहे गए हैं। दं. १६. वनस्पतिकाय के जीव नाना प्रकार के संस्थान वाले कहे गए हैं। दं. १७-२०. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव हुण्ड संस्थान वाले कहे गए हैं। गर्भव्युत्क्रान्तिक तिर्यंञ्च छहों संस्थान वाले कहे गए हैं। दं. २१. सम्मूर्छिम मनुष्य हुण्ड संस्थान वाले कहे गए हैं। गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थान वाले कहे गए हैं। दं.२२-२४. बाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन
असुरकुमारों के समान है। ५०. चौबीस दण्डकों में संस्थान-निवृत्ति का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! संस्थान-निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! संस्थान निर्वृत्ति छह प्रकार की कही गई है, यथा
१. समचतुरन-संस्थान निर्वृत्ति यावत् ६. हुण्डक संस्थान ..
निर्वृत्ति। प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिकों की संस्थान-निवृत्ति कितने प्रकार की
कही गई है? उ. गौतम ! उनके एकमात्र हुण्डक-संस्थान-निवृत्ति कही गई है। प्र. दं. २-११. भन्ते ! असुरकुमारों के संस्थान-निवृत्ति कितने
प्रकार की कही गई है। उ. गौतम ! उनके एक मात्र समचतुरन-संस्थान-निवृत्ति कही
प. दं.१. नेरइयाणं भंते ! कइविहा संठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता?
उ. गोयमा ! एगा हुंडसंठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता। प. दं.२-११.असुरकुमाराणं भंते ! कइविहा संठाणनिव्वत्ती
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगा समचउरंससंठाणनिव्वत्ती पण्णत्ता।
एवंजाव थणियकुमाराणं। प. दं. १२. पुढविकाईयाणं भंते ! कइविहा संठाणनिव्वत्ती
पण्णत्ता?
इसी प्रकार स्तनितकुमारों-पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों के संस्थान-निवृत्ति कितने
प्रकार की कही गई है?
१. जीवा. पडि. १ सु. ३२ २, जीवा. पडि. १ सु. ४२ ३. (क) जीवा, पडि. १ सु. १३ (४)
(ख) जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. ८७ (२) ४, जीवा. पडि. १ सु. १६ ५. - जीवा. पडि. १ सु. २५
६. जीवा. पडि. १ सु. २६ ७. जीवा. पडि. १ सु. २१ ८. जीवा. पडि. १ सु. २८-३०, ३५-३७ ९. जीवा. पडि. १ सु. ३८-४० १०-११. जीवा. पडि. १ सु. ४१ १२. जीवा. पडि. १ सु. ४२