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________________ ४२० एवं कम्मगसरीरी वि असरीरी साइए-अपज्जवसिए। जीवा. पडि. ९, सु. २५१ २७. ओरालियाईसरीरीणं अंतरकाल पलवर्ण ओरालियसरीरस्स अंतर जहण्जेण एवं समय, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई । बेव्यियसरी रस्स- अंतर जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतकाल वणरसइकालो। आहारगसरीरस्स-जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, कोणं अतं कालं जाव अवढं पोग्गलपरिय देणं तेयग-कम्मगाणं दोण्हवि अणाइय- अपज्जयसियाणं णत्थि अंतर, अणाइय-सपज्जवसियाणं णत्थि अंतरं । असरीरिस्स साइय- अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं । --जीवा. पडि. ९, सु. २५१ २८. ओरालियाईसरीरीणं अप्पबहुत्तं " प. एएस भर्ती ओरालियसरीरी वेउब्वियसरीरी, आहारगसरीरी, तेयगसरीरी, कम्मगसरीरी, असरीरी य जीवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ? उ. गोयमा ! १ सव्वत्थोवा आहारगसरीरी. २. वेउब्वियसरीरी असंखेज्जगुणा, ३. ओरालियसरीरी असंखेज्जगुणा, ४. असरीरी अनंतगुणा. ५. तेयगकम्मगसरीरी दोवि तुल्ला अनंतगुणा । -जीवा. पडि. ९, सु. २५१ २९. दव्वट्टयाइ विवक्खया सरीराणं अप्पबहुत्तं प. एएसि णं भंते! ओरालिय वेडब्बिय आहारग, तेयग कम्मगसरीराणं दव्वट्ट्याए पएसट्टयाएदब्बट्ठपएसट्टयाए कबरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाडिया वा ? उ. गोयमा ११. सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दब्बट्ट्याए । २. वेउव्वियसरीरा दव्वट्ट्याए असंखेज्जगुणा, ३. ओरालियसरीरा दव्वट्ट्याए असंखेज्जगुणा, ४-५. तेयगकम्मगसरीरा दो वि तुल्ला दव्वट्ठयाए " पएसट्टयाए १. सव्वत्थोवा आहारगसरीरा पएसट्ट्याए, २. वेउव्वियसरीरा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, ३. ओरालियसंरीरा पएसट्ट्याए असंखेज्जगुणा, द्रव्यानुयोग - (१) इसी प्रकार कार्मणशरीरी भी दो प्रकार के हैं। अशरीरी सादि अपर्यवसित है। २७. औदारिकादि शरीरियों के अंतरकाल का प्ररूपणऔदारिक शरीर का जघन्य अन्तर काल एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम का है। वैक्रिय शरीर का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट अनन्त काल वनस्पतिकाल है। आहारक शरीर का जघन्य अन्तर अंतर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट अनन्त काल यावत् कुछ कम अर्ध पुद्गल परावर्तन है। अनादि अनन्त तैजस्-कार्मण इन दोनों शरीरों का अन्तर काल नहीं है। अनादि सान्त का भी अन्तर काल नहीं हैं। अशरीरी सादि अपर्यवसित का अन्तर काल नहीं है। २८. औदारिकादि शरीरियों का अल्प बहुत्य प्र. भते ! इन औदारिक शरीरी, वैकिय शरीरी आहारक शरीरी, , तेजस् शरीरी, कार्मण शरीरी और अशरीरी जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है ? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प आहारक शरीर वाले हैं, २. (उनसे) वैक्रिय शरीर वाले असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) औदारिक शरीर वाले असंख्यातगुणे हैं, ४. ( उनसे ) अशरीरी अनन्तगुणे हैं, ५-६ ( उनसे) तैजस् कार्मण शरीर वाले अनन्तगुणे हैं और दोनों परस्पर तुल्य हैं। २९. द्रव्यार्थादि की विवक्षा से शरीरों का अल्पबहुत्व प्र. भन्ते ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस् और कार्मण इन पांचों शरीरों में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प आहारक शरीर है। २. ( उससे) वैक्रिय शरीर द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा है। ३. (उससे) औदारिक शरीर द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा है। ४५. (उससे) तेजस् और कार्मण शरीर दोनों तुल्य है और द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा है। प्रदेशों की अपेक्षा १. सबसे कम प्रदेशों की अपेक्षा से आहारक शरीर हैं। २. ( उससे) प्रदेशों की अपेक्षा से वैक्रिय शरीर असंख्यातगुणा है। ३. (उससे) प्रदेशों की अपेक्षा से औदारिक शरीर असंख्यातगुणा है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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