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________________ शरीर अध्ययन ४२१ ४. तेयगसरीरा पएसट्ठयाए अणंतगुणा, ५. कम्मगसरीरा पएसट्ठयाए अणंतगुणा। दव्वट्ठपएसट्ठयाए१. सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्ठयाए, २. वेउब्वियसरीरा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ३. ओरालियसरीरा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ४. ओरालियसरीरेहिंतो दव्वट्ठयाए आहारगसरीरा पएसठ्ठयाए अणंतगुणा, ५. वेउब्वियसरीरा पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ६. ओरालियसरीरा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, ४. (उससे) प्रदेशों की अपेक्षा से तैजस् शरीर अनन्तगुणा है। ५. (उससे) प्रदेशों की अपेक्षा से कार्मण शरीर अनन्तगुणा है। द्रव्य एवं प्रदेशों की अपेक्षा से१. द्रव्य की अपेक्षा से आहारक शरीर सबसे अल्प है। २. (उससे) वैक्रिय शरीर द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा है। ३. (उससे) औदारिक शरीर द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा है। ४. द्रव्य की अपेक्षा औदारिक शरीर से प्रदेशों की अपेक्षा आहारक शरीर अनन्तगुणा है, ५. (उससे) वैक्रिय शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणा है। ६. (उससे) औदारिक शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा है। ७. तैजस् और कार्मण दोनों तुल्य हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा है। ८. (उससे) तैजस् शरीर प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणा है। ९. (उससे) कार्मण शरीर प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणा है। ७. तेयगकम्मगसरीरा दो वितुल्ला दब्बट्ठयाए अणंतगुणा, ८. तेयगसरीरा पएसट्ठयाए अणंतगुणा, ९. कम्मगसरीरापएसट्ठयाए अणंतगुणा। -पण्ण. प.२१,सु.१५६५ ३०.ओगाहणा पगारा चउव्विहा ओगाहणा पण्णत्ता,तं जहा१. दव्वोगाहणा, २. खेत्तोगाहणा, ३. कालोगाहणा, ४. भावोगाहणा। -ठाणं.अ.४, उ.१.सु.२७६ ३१. जीवोगाहणा नवविहत्तं णवविहा जीवोगाहणा पण्णत्ता,तं जहा१. पुढविकाइय ओगाहणा जाव ५. वणस्सइकाइय ओगाहणा। ६. बेइंदियओगाहणा जाव९.पंचेंदियओगाहणा। -ठाणं. अ. ९, सु. ६६६/१३ ३२. ओरालियसरीरीणं ओगाहणाप. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण साइरेगंजोयणसहस्स। एगिंदिय-ओरालियस्स वि एवं चेव जहा ओहियस्स। ३०.अवगाहना के प्रकार अवगाहना चार प्रकार की कही गई है, यथा१. द्रव्यावगाहना-द्रव्यों के फैलाव का परिमाण, २. क्षेत्रावगाहना-क्षेत्र स्वयं अवगाहना है, ३. कालावगाहना-काल का परिमाण वह मनुष्यलोक में है, ४. भावावगाहना-आश्रय लेने की क्रिया। ३१. नौ प्रकार की जीव अवगाहना जीवों की अवगाहना नौ प्रकार की कही गई है, यथा१. पृथ्वीकायिक अवगाहना यावत् ५. वनस्पतिकायिक अवगाहना। ६. द्वीन्द्रिय अवगाहना यावत् ९. पंचेन्द्रिय अवगाहना। ३२. औदारिक शरीरियों की अवगाहना प्र. भन्ते ! औदारिक शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? प. पुढविक्काइय-एगिदिय-ओरालियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागरे । एवं अपज्जत्तयाण वि, पज्जत्तयाण वि। उ. गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्टतः कुछ अधिक हजार योजन की है। एकेन्द्रिय के औदारिक शरीर की अवगाहना भी जैसे औधिक की कही है उसी प्रकार समझनी चाहिए। प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। इसी प्रकार अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक की भी समझनी चाहिए। १. सम.सु.१५२ २. (क) अणु. कालदारे, सु. ३४९ (ख) विया.स.२४,उ.१२.सु.३ (ग) जीवा. पडि.सु.१३(२)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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