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________________ शरीर अध्ययन ४१९ १. पुढविकाइयाणं, १. पृथ्वीकायिक जीवों का, २. आउकाइयाणं, २. अप्कायिक जीवों का, ३. तेउकाइयाणं, ३. तेजस्कायिक जीवों का, ४. वणस्सइकाइयाणं। -ठाणं.अ.४, उ. ३, सु. ३३४/२ ४. (साधारण) वनस्पतिकायिक जीवों का। २५. सम्मुच्छिम-गब्भवतिय-पंचें दिय-तिरिक्खजोणियाणं २५. सम्मूर्छिम-गर्भज-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों मणुस्साण य सरीरसंखा परूवणं की शरीर संख्या का प्ररूपणप. सम्मुच्छिम-पंचेंदिय-तिरिक्ख-जोणियजलयराणं भंते! कइ प्र. भंते ! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचरों के कितने सरीरापण्णत्ता? शरीर कहे गए हैं ? उ. गोयमा !तओ सरीरापण्णत्ता,तं जहा उ. गौतम ! १. तीन शरीर कहे गए हैं, यथा१.ओरालिए,२. तेयए,३. कम्मए। १. औदारिक, २. तैजस्, ३. कार्मण। चउप्पय थलयराण तओ सरीरा एवं चेब, इसी प्रकार चतुष्पद स्थलचरों के भी तीन शरीर हैं, उरपरिसप्प-भुयगपरिसप्प सम्मुच्छिमाणं तओ सरीरा एवं इसी प्रकार उरपरिसर्प भुजपरिसर्प सम्मूर्छिम के भी तीन चेव। शरीर हैं। खहयरसम्मुच्छिमाणं वितओ सरीरा एवं चेव। इसी प्रकार खेचर सम्मूर्छिमों के भी तीन शरीर हैं। -जीवा. पडि. १, सु.३५-३६ प. गब्भवक्कंतिय-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिय-जलयराणं भंते ! प्र. भंते ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचरों के कितने कइ सरीरापण्णत्ता? शरीर कहे गए हैं? उ. गोयमा !चत्तारि सरीरापण्णत्ता,तं जहा उ. गौतम ! चार शरीर कहे गए हैं, यथा१.ओरालिए, २. वेउव्विए,३.तेयए, ४. कम्मए। १. औदारिक, २. वैक्रिय,३. तैजस्, ४. कार्मण। चउप्पय थलयराण चत्तारि सरीरा एवं चेव, इसी प्रकार चतुष्पद स्थलचरों के भी चार शरीर हैं। उरपरिसप्प भुयगपरिसप्प गब्भवतियाणं चत्तारि इसी प्रकार उरपरिसर्प भुजपरिसर्प गर्भजों के भी चार शरीर सरीरा एवं चेव। खहयरगब्भवतियाणं वि चत्तारि सरीरा एवं चेव। इसी प्रकार खेचर गर्भजों के भी चार शरीर हैं। -जीवा. पडि. १, सु.३८४० प. सम्मुच्छिम मणुस्साणं भंते ! कइ सरीरापण्णत्ता? प्र. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्यों के कितने शरीर कहे गए हैं ? उ. गोयमा !तओ सरीरापण्णत्ता,तं जहा उ. गौतम ! तीन शरीर कहे गए हैं, यथा१.ओरालिए,२.तेयए,३. कम्मए १.औदारिक, २. तैजस्, ३. कार्मण। प. गब्भवक्कंतिय मणुस्साणं भंते ! कइ सरीरापण्णत्ता? प्र. भंते ! गर्भज मनुष्यों के कितने शरीर कहे गए हैं, उ. गोयमा ! पंच सरीरापण्णत्ता, तं जहा उ. गौतम ! पांच शरीर कहे गए हैं, यथा१.ओरालिए,२. वेउविए,३.आहारए, ४. तेयए, ५. १. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. आहारक, ४. तैजस्, ५. कम्मए। -जीवा. पडि. १, सु. ४१ कार्मण। २६.ओरालियाईसरीरीजीवाणं कायट्ठिई परूवणं २६. औदारिकादि शरीरी जीवों की कायस्थिति का प्ररूपणप. ओरालियसरीरी णं भंते ! ओरालियसरीरित्ति कालओ प्र. भंते ! औदारिक शरीरी, औदारिकशरीरी के रूप में कितने केवचिरं होइ? काल तक रहता है? उ. गोयमा !जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमयूणं, उ. गौतम ! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जइभागं असंख्यातकाल यावत् अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र के प्रदेशों प्रमाण रहता है। वेउब्वियसरीरी-जहन्नेण अंतोमुहुत्तं, वैक्रियशरीरी जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमब्भहियाई। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक रहता है। आहारगसरीरी-जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, आहारकशरीरी जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं। तक रहता है। तेयगसरीरी-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा तेजस् शरीरी दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अणाइए वा अपज्जवसिए, २. अणाइए वा १. अनादि अपर्यवसित, २. अनादि सपर्यवसित। सपज्जवसिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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