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________________ ४०८ ११. सामित्त विवक्खया कम्मगसरीरस्स विविह भेया प. कम्मगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १.एगिदियकम्मगसरीरे जाव ५.पंचेंदिय कम्मग सरीरे। एवं जहेव तेयगसरीरस्स भेदो भणियओ तहेव गिरवसेस भाणियव्वं जाव सव्वट्ठसिद्धदेवेत्ति। -पण्ण. प.२१, सु. १५५२ १२. सरीर निव्वत्ती भेया चउवीसदंडएसुयपरूवणं प. कइविहा णं भंते !सरीरनिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा सरीरनिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा १. ओरालियसरीरनिव्वत्ती जाव ५. कम्मगसरीरनिव्वत्ती। प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! कइविहा सरीरनिव्वत्ती पण्णत्ता? द्रव्यानुयोग-(१) ) ११. स्वामित्व की विवक्षा से कार्मण शरीर के विविध भेद प्र. भन्ते ! कार्मण शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. एकेन्द्रिय कार्मण शरीर यावत् ५. पंचेन्द्रिय कार्मण शरीर। इस प्रकार जैसे तैजस शरीर के भेदों का कथन किया है उसी प्रकार से सम्पूर्ण कथन कार्मण शरीर के भेदों का सर्वार्थसिद्ध देव पर्यन्त करना चाहिए। १२. शरीर निर्वृत्ति के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! शरीरनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गयी है? उ. गौतम ! शरीरनिर्वृत्ति पांच प्रकार की कही गयी है, यथा १. औदारिक शरीरनिवृत्ति यावत् ५. कार्मण शरीर निवृत्ति। प्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिकों की कितने प्रकार की शरीरनिर्वृत्ति कही गई है? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-जिसके जितने शरीर हों उतनी निवृत्ति कहनी चाहिए। उ. गोयमा ! एवं चेव। द.२-२४. एवं जाव वेमाणिया णवरं-नेयव्वं जस्स जइ सरीराणि तस्स तइ। -विया. स. १९, उ. ८, सु. ८-१० १३. चउवीसदंडएसुसरीरुप्पत्ती निव्वत्ति कारणाई दं. १-२४. नेरइयाणं दोहिं ठाणेहिं सरीरुप्पत्ति सिया, तं जहा१. रागेण चेव, २. दोसेण चेव। एवं जाव वेमाणिया। दं. १-२४. नेरइयाणं दुट्ठाणनिव्वत्तिए सरीरए पण्णत्ते, तं जहा१. रागनिव्वत्तिए चेव, २. दोसनिव्वत्तिए चेव। एवं जाव वेमाणियाणं। -ठाणं. अ.२, उ.१, सु.६५/३-४ दं. १-२४. णेरइयाणं चउहिं ठाणेहिं सरीरुप्पत्ती सिया, तं जहा१.कोहेणं,२.माणेणं,३.मायाए,४.लोभेणं। एवं जाव वेमाणियाणं। दं. १-२४. णेरइयाणं चउट्ठाणनिव्वत्तिए सरीरए पण्णत्ते,तं जहा१.कोहनिव्वत्तिए जाव ४.लोहनिव्वत्तिए। एवं जाव वेमाणियाणं। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३७१ १४. सरीरबंध भेया-चउवीसदंडएसुय परूवणंप. ओरालियसरीरस्स जाव कम्मगसरीरस्स णं भंते ! कहविहे बंधे पण्णत्ते? 'उ. गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा १.जीवप्पयोगबंधे,२.अणंतर बंधे ३. परंपरबंधे। १३. चौवीस दण्डकों में शरीरोत्पत्ति और निवृत्ति के कारण दं.१-२४. नैरयिकों के शरीरों की उत्पत्ति दो कारणों से होती है, यथा१. राग से २. द्वेष से। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। दं.१-२४. नैरयिकों के शरीर की रचना दो स्थानों से कही गई है, यथा१. राग से शरीर की रचना होती है। २. द्वेष से शरीर की रचना होती है। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त शरीरों की रचना के कारण कहने चाहिए। दं.१-२४. चार कारणों से नैरयिकों के शरीर की उत्पत्ति होती है, यथा१.क्रोध से २. मान से, ३. माया से ४. लोभ से। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। दं. १-२४. नैरयिकों के शरीर चार कारणों से निवर्तित (निष्पन्न) होते हैं, यथा१. क्रोध निवर्तित यावत् ४. लोभ निवर्तित। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। १४. शरीरों के बंध भेद और चौवीस दंडकों में प्ररूपणप्र. भन्ते ! औदारिक शरीर यावत् कार्मण शरीर का बंध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! बंध तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १.जीव प्रयोग बंध २. अनंतर बंध ३. परम्पर बंध।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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