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________________ शरीर अध्ययन ४०७ उ. गौतम ! प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, उ. गोयमा ! पमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्ज वासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसआहारगसरीरे। णो अपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के नहीं होता है। प्र. यदि प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या ऋद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है या अनृद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है? प. जइ पमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्ज-वासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-आहारगसरीरे, किं इड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तयसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसआहारगसरीरे? अणिड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसआहारगसरीरे? गोयमा ! इड्ढिपत्तपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तयसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसआहारगसरीरे? णो अणिढिपत्तपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तयसंखेज्ज-वासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसआहारगसरीरे। -पण्ण. प. २१, सु. १५३३ १०. सामित्त विवक्खया तेयगसरीरस्स विविह भेया प. तेयगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा १. एगिंदियतेयगसरीरे जाव ५. पंचेंदियतेयगसरीरे। प. एगिदियतेयगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? . उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा १. पुढविकाइय जाव ५. वणस्सइकाइय-एगिंदियतेयगसरीरे। एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणिओ तहा तेयगस्स विजाव चउरिंदियाणं। प. पंचेंदियतेयगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १.णेरइयतेयगसरीरे जाव ४. देवतेयगसरीरे। णेरइयाणं दुगओ भेदो भाणियव्यो जहा वेउब्वियसरीरे। उ. गौतम ! ऋद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, किन्तु अनृद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर नहीं होता है। १०. स्वामित्व की विवक्षा से तैजस शरीर के विविध भेद प्र. भन्ते ! तैजस शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. एकेन्द्रिय तैजस शरीर यावत् ५. पंचेन्द्रिय तैजस् शरीर। प्र. भन्ते ! एकेन्द्रिय तैजस् शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. पृथ्वीकायिक तैजस शरीर यावत् ५. वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तैजस् शरीर। इसी प्रकार जैसे औदारिक शरीर के भेद कहे हैं, उसी प्रकार तैजस् शरीर के भेद चतुरिन्द्रिय पर्यन्त कहने चाहिए। प्र. भन्ते ! पंचेन्द्रिय तैजस् शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक तैजस् शरीर यावत् ४. देव तैजस् शरीर। जैसे नारकों के वैक्रिय शरीर में पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो भेद कहे गए हैं उसी प्रकार यहां नारकों के तैजस् शरीर के भी भेद कहने चाहिए। जैसे पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों और मनुष्यों के औदारिक शरीर के भेदों का कथन किया गया है, उसी प्रकार यहां भी भेदों का कथन करना चाहिए। जैसे देवों के वैक्रिय शरीर के भेद कहे गए हैं, वैसे ही सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त देवों के भेदों का कथन करना चाहिए। पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा ओरालियसरीरे भेओ भणिओ तहा भाणियव्यो। देवाणं जहा वेउव्वियसरीरे भेओ भणिओ तहा भाणियव्योजाव सव्वट्ठसिद्धदेवे त्तिरे। -पण्ण.प.२१.सु.१५३६-१५३९ १. सम.सु. १५२ २. सम.सु.१५२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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