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________________ ४०६ प. जइ संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस आहारगसरीरे, किं पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, अपज्जत्तय-असंखेज्जवासाउय-कम्मभमग गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे? उ. गोयमा ! पज्जत्तय संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, णो अपज्जत्तय-असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे। प. जइ पज्जत्त-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय मणूस-आहारगसरीरे, किं सम्मदिट्ठिपज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, मिच्छदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे? सम्मामिच्छदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे? उ. गोयमा ! सम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, णो मिच्छदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, णो सम्मामिच्छदिठ्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे। प. जइ सम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग गब्भवक्कंतियमणूस-आहारगसरीरे, किं संजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्ज-वासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे ? असंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्ज-वासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे ? संजयासंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्ज-वासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे ? उ. गोयमा ! संजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, णो असंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, णो संजयासंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे। प. जइ संजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे, किं पमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्ज वासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-आहारगसरीरे? अपमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तय संखेज्ज वासाउयकम्मभूमग - गब्भवक्कंतिय - मणूस -आहारगसरीरे? द्रव्यानुयोग-(१) प्र. यदि संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है या अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के होता है? उ. गौतम ! पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के नहीं होता है। प्र. यदि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है या सम्यग्मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है? उ. गौतम ! सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, किन्तु न तो मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है और न ही सम्यग्मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है। प्र. यदि सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है या असंयत सम्यगदृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है या संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है ? उ. गौतम ! संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, किन्तु न तो असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है और न ही संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है। प्र. यदि संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है या अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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