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________________ द्रव्यानुयोग-(१) १. वैक्रिय, २. आहारक, ३. तैजस्, ४. कार्मण। चार शरीर कार्मण शरीर से संयुक्त होते हैं, यथा१.औदारिक, २. वैक्रिय, ३. आहारक, ४. तैजस्। ( ३९८ ।। १.वेउव्विए,२.आहारए, ३. तेयए, ४.कम्मए। चत्तारि सरीरगा कम्मुमीसगा पण्णत्ता,तं जहा१.ओरालिए,२. वेउव्विए,३.आहारए, ४.तेयए। -ठाणं, अ.४, उ.३, सु.३३२ ७. सामित्तविवक्खया ओरालियसरीरस्स विविह भेया प. ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. एगिदिय ओरालियसरीरे जाव ५. पंचेंदिय ओरालियसरीरे। प. एगिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे जाव । ५. वणस्सइकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे। प. पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सुहुम पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे य, २. बायर पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे य। प. सुहुम-पुढविकाइय-एगिंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. पज्जत्तय - सुहुम - पुढविकाइय - एगिंदिय - ओरालियसरीरे य, २. अपज्जत्तय - सुहुम - पुढविकाइय - एगिदिय - ___ ओरालियसरीरे य। बायर-पुढविकाइया वि एवं चेव। एवं जाव वणस्सइकाइय-एगिंदिय-ओरालियसरीरे त्ति। ७. स्वामित्व की विवक्षा से औदारिक शरीर के विविध भेद प्र. भंते ! औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. एकेन्द्रिय औदारिक शरीर यावत् ५. पंचेंद्रिय औदारिक शरीर। प्र. भंते ! एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर यावत् ५. वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर। प्र. भंते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर, २. बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर।' प्र. भंते ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर, २. अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर। प. बेइंदिय-ओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. पज्जत्तय-बेइंदिय-ओरालियसरीरे य, २.अपज्जत्तय बेइंदिय-ओरालियसरीरे य। एवं तेइंदिय-चउरिंदिया वि। इसी प्रकार बादर पृथ्वीकायिक के भी दो भेद हैं। इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यंत एकेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी दो-दो भेद हैं। प्र. भंते ! द्वीन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. पर्याप्त द्वीन्द्रिय औदारिक शरीर, २. अपर्याप्त द्वीन्द्रिय औदारिक शरीर। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के भी दो-दो भेद समझ लेने चाहिए। प्र. भंते ! पंचेंद्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. तिर्यञ्चयोनिक पंचेंद्रिय औदारिक शरीर, २. मनुष्य पंचेंद्रिय औदारिक शरीर। प्र. भंते ! तिर्यञ्चयोनिक पंचेंद्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? प. पंचेंदिय-ओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. तिरिक्खजोणियपंचेंदिय-ओरालियसरीरे य, २. मणुस्सपंचेंदिय-ओरालियसरीरे य। प. तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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