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________________ ३९७ शरीर अध्ययन जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? उ. गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि, जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अस्थि सियणत्थि। प. जस्सणं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं? जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? जिसके वैक्रिय शरीर होता है, क्या उसके औदारिक शरीर भी होता है? उ. गौतम ! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके वैक्रिय शरीर कदाचित् होता है कदाचित् नहीं भी होता है। जिसके वैक्रिय शरीर होता है, उसके औदारिक शरीर कदाचित् होता है कदाचित् नहीं भी होता है। प्र. भंते ! जिसके औदारिक शरीर होता है, क्या उसके आहारक शरीर होता है? जिसके आहारक शरीर होता है क्या उसके औदारिक शरीर होता है? उ. गौतम ! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके आहारक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है, किन्तु जिस जीव के आहारक शरीर होता है उसके नियम से औदारिक शरीर होता है। प्र. भंते ! जिसके औदारिक शरीर होता है, क्या उसके तैजस् शरीर होता है? जिसके तैजस् शरीर होता है क्या उसके औदारिक शरीर होता उ. गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं सिय अस्थि सिय णस्थि, जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं णियमा अत्थि। प. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीर तस्स तेयगसरीरं? जस्सपुण तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? उ. गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं णियमा अस्थि , जस्स पुण तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अत्थि सिय णत्थि। एवं कम्मगसरीरं पि। प. जस्स णं भंते ! वेउव्वियसरीरं तस्स आहारगसरीरं? जस्स आहारगसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं? उ. गोयमा ! जस्स वेउव्वियसरीरं तस्साहारगसरीरंणत्थि। जस्स वि आहारगसरीरं तस्स वि वेउव्वियसरीरं णत्थि। तेयग कम्माई जहा ओरालिएणं समं तहेव आहारगसरीरेण वि समंतेयग कम्माई चारेयव्वाणि। गौतम ! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके नियम से तैजस् शरीर होता है, जिसके तैजस् शरीर होता है, उसके औदारिक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है। इसी प्रकार औदारिक शरीर के साथ कार्मण शरीर का संयोग भी समझ लेना चाहिए। प्र. भंते ! जिसके वैक्रिय शरीर होता है, क्या उसके आहारक शरीर होता है? जिसके आहारक शरीर होता है, उसके वैक्रिय शरीर होता है ? उ. गौतम ! जिस जीव के वैक्रिय शरीर होता है, उसके आहारक शरीर नहीं होता है, जिसके आहारक शरीर होता है, उसके वैक्रिय शरीर नहीं होता है। जैसे औदारिक के साथ तैजस् एवं कार्मण शरीर के संयोग का कथन किया गया है, उसी प्रकार आहारक शरीर के साथ तैजस् और कार्मण शरीर का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! जिसके तैजस शरीर होता है, क्या उसके कार्मण शरीर होता है? जिसके कार्मण शरीर होता है, क्या उसके तैजस् शरीर होता है? उ. गौतम ! जिसके तैजस् शरीर होता है, उसके कार्मण शरीर अवश्य ही होता है, जिसके कार्मण शरीर होता है उसके तैजस् शरीर अवश्य होता है। ६. चार शरीरों का जीवस्पृष्ट और कार्मणयुक्त होने का प्ररूपण चार शरीर जीव से स्पृष्ट (जीव के सहवर्ती) होते हैं, यथा प. जस्स णं भंते ! तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं? जस्स कम्मगसरीरंतस्स तेयगसरीरं? उ. गोयमा ! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं णियमा अस्थि , जस्स वि कम्मगसरीरं तस्स वि तेयगसरीरं णियमा अत्थि। -पण्ण. प.२१,सु.१५५९-१५६४ ६. चत्तारिसरीरगा जीवफुडा कम्मुमीसगा य परूवणं चत्तारि सरीरगा जीवफुडा पण्णत्ता,तं जहा
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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