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द्रव्यानुयोग-(१) १४. शरीर अध्ययन
१४. सरीर अज्झयणं
मृत्र
सूत्र
१. सरीर भेय परूवणं
प. कइणं भंते ! सरीरा पण्णता? उ. गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता,तं जहा
१.ओरालिए, २. वेउव्विए, ३. आहारए ४. तेयए, ५. कम्मए।
__ -पण्ण.प. १२, सु. ९०१२. ओहेण सरीरुप्पत्ति हेउणो
प. से णं भंते !सरीरे किं पवहे ? उ. गोयमा ! जीवप्पवहे एवं सइअस्थि उट्ठाणे ति वा, कम्मे तिवा, बले ति वा, वीरिए ति वा, पुरिसक्कारपरक्कमे ति वा।
-विया. स.१, उ.३, सु. ९/५ ३. सरीराणं अगुरुलहुत्ताइ परूवणं
प. सरीरा णं मंते ! किं गरुया, लहुया, गरुयलहुया - अगरुयलहुया? उ. गोयमा ! चत्तारि सरीरा नो गरुया, नो लहुया,
गरुयलहुया, नो अगुरुयलहुया। कम्मयसरीरं नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए अगरुयलहुए।
-विया. स.१, उ.९, सु. १२ ४. सरीराणं पोग्गलचिणणा
प. ओरालियसरीरस्सणं भंते ! कइदिसिं पोग्गला चिज्जंति?
१. शरीर के भेदों का प्ररूपण
प्र. भंते ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं? . उ. गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. औदारिक, २. वैक्रिय, ३. आहारक, ४. तैजस्, ५.
कार्मण। २. सामान्यतःशरीरों की उत्पत्ति के हेतु
प्र. भंते ! शरीर किससे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है और ऐसा होने से जीव
का उत्थान, कर्म,बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम (निमित्त)
होता है। ३. शरीरों के अगुरुलघुत्वादि का प्ररूपण
प्र. भंते ! क्या शरीर गुरु है, लघु है, गुरुलघु है या अगुरुलघु है ?
उ. गौतम ! चार शरीर न गुरु हैं, न लघु हैं, गुरु लघु हैं, किन्तु
अगुरुलघु नहीं है। कार्मण शरीर न गुरु है, न लघु हैं, न गुरुलघु हैं किन्तु अगुरु
लघु हैं।
उ. गोयमा ! णिव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय
तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं।
. प. वेउब्वियसरीरस्सणं भंते ! कइदिसिं पोग्गला चिज्जति?
उ. गोयमा !णियमा छद्दिसिं।
एवं आहारगसरीरस्स वि। तेयगकम्मगाणं जहा ओरालियसरीरस्स। एवं उवचिज्जति अवचिजंति।
-पण्ण.प.२१,सु. १५५३-१५५८
४. शरीरों का पुद्गल चयनप्र. भंते ! औदारिक शरीर के लिए कितनी दिशाओं से पुद्गलों
का चय होता है? उ. गौतम ! निर्व्याघात की अपेक्षा से छहों दिशाओं से और
व्याघात की अपेक्षा से कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पांच दिशाओं से पुद्गलों का
चय होता है। प्र. भंते ! वैक्रिय शरीर के लिए कितनी दिशाओं से पुद्गलों का
चय होता है? उ. गौतम ! नियम से छहों दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है।
इसी तरह आहारक शरीर के पुद्गलों का चय भी (नियम से छहों दिशाओं से) होता है। तैजस और कार्मण शरीरों के लिए औदारिक शरीर के समान समझना चाहिए। (औदारिक आदि पांचों शरीरों के पुद्गलों का) जिस प्रकार चय कहा गया है उसी प्रकार उनका उपचय-अपचय भी कहना
चाहिए। ५. शरीरों का परस्पर संयोगासंयोगप्र. भंते ! जिस जीव के औदारिक शरीर होता है, क्या उसके
वैक्रिय शरीर होता है?
५. सरीराणं परोप्पर संजोगासंजोग
प. जस्सणं भंते ! ओरालियसरीरंतस्स णं वेउव्वियसरीरं?
१. (क) अणु. कालदारे,सु.४०५
(ख) पण्ण.प.२१,सु.१४७५ (ग) विया.स.१०, उ.१, सु. १८ (घ) विया.स. १७, उ.१.सु. १५
(ङ) ठाणं.अ.५, उ.१,सु.३९५ (च) विया.स.२५,उ.४,सु.८० (छ) सम.सु. १५२