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स्थिति अध्ययन
३४५ ) १२. माहेन्द्र, माहेन्द्रध्वज, कंबु, कंबुग्रीव, पुख, सुपंख, महापुंख,
पुंडू, सुपुंड्र, माहपुंड्र, नरेन्द्र, नरेन्द्रकान्त और नरेन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति बारह सागरोपम की कही गई है।
१३. वज, सुवज, वज्रावर्त, वजप्रभ, वज्रकान्त, वज्रवर्ण,
वजलेश्य, वज्रध्वज, वजशृंग, वज्रसृष्ट, वज्रकूट, वज्रोत्तरावतंसक तथा, वैर, वैरावर्त, वैरप्रभ, वैरकान्त, वैरवर्ण, वैरलेश्य, वैरध्वज, वैरशृंग, वैरसृष्ट, वैरकूट, वैरोत्तरावतंसक तथा,
लोक, लोकावर्त, लोकप्रभ, लोककान्त, लोकवर्ण, लोकलेश्य, लोकध्वज, लोकशृंग, लोकसृष्ट, लोककूट और लोकोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेरह सागरोपम की कही गई है।
१२. जे देवा माहिंदं महिंदज्झयं कंबुं कंबुग्गीवं पुंखं सुपुंखं
महापुंखं पुंडं, सुपुंडं, महापुंडं नरिंदं नरिंदकंतं नरिंदुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.१२, सु. १७ १३. जे देवा वज्ज सुवज्जं वज्जावत्तं वज्जप्पभं वज्जकंतं
वज्जवण्णं वज्जलेसं वज्जज्झयं वज्जसिंगं वज्जसिट्ठ वज्जकूडं वज्जुत्तरवडिंसगं, वइरं वइरावत्तं वइरप्पभं वइरकंतं वइरवण्णं वइरलेसं वइरज्झयं वइरसिंगं वइरसिठं वइरकूडं वइरुत्तरवडेंसगं, लोगं लोगावत्तं लोगप्पभं लोगकंतं लोगवण्णं लोगलेसं लोगज्झयं लोगसिंग लोगसिट्ठ लोककूडं लोगूत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण तेरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम. १३, सु. १४ १४. जे देवा सिरिकंतं सिरिमहियं सिरिसोमनसं लंतयं
काविळं महिंदं महिंदोकंतं महिंदुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण चउद्दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. १४, सु.१५ जे देवा णंदं सुणंदं णंदावत्तं गंदप्पभं णंदकंतं णंदवण्णं णंदलेसं णंदज्झयं णंदसिंगं णंदसिट्ठ णंदकूडं णंदुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं । देवाणं उक्कोसेण पण्णरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम.सम.१५,सु.१३ १६. जे देवा आवत्तं वियावत्तं नंदियावत्तं महाणंदियावत्तं
अंकुसं अंकुसपलंबं भद्दे सुभदं महाभद्दे सव्वओभई भद्दुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -
सम. सम.१६, सु.१३ १७. जे देवा सामाणं सुसामाणं महासामाणं पउमं महापउम
कुमुदं महाकुमुदं नलिणं महानलिणं पोंडरीअं महापोंडरीअंसुक्कं महासुक्कं सीहं सीहोकंतं सीहवीअं भाविअं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
-सम. सम.१७, सु. १८ १८. जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिट्ठ सालं
समाणं दुमं महादुमं विसालं सुसालं पउमं पउमगुम्म कुमुदं कुमुदगुम्म नलिणं नलिणगुम्मं पुंडरीअं पुंडरीयगुम्मं सहस्सारवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण अट्ठारस
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१८, सु.१५ १९. जे देवा आणतं पाणतं णतं विणतं घणं सुसिर इंद
इंदोकंतं इंदुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण एगूणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
-सम.सम.१९,सु.१२
१४. श्रीकान्त, श्रीमहित, श्रीसोमनस, लान्तक, कापिष्ठ, महेन्द्र,
महेन्द्रावकान्त और महेन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम'
की कही गई है। १५. नन्द, सुनन्द, नन्दावर्त, नन्दप्रभ, नन्दकान्त, नन्दवर्ण,
नन्दलेश्य, नन्दध्वज, नन्दशृंग, नन्दसृष्ट, नन्दकूट, नन्दोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह सागरोपम की कही गई है।
१६. आवर्त्त, व्यावर्त्त, नन्द्यावर्त्त, महानन्द्यावर्त्त, अंकुश,
अंकुशप्रलंब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र और भद्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है।
१७. सामान, सुसामान, महासामान, पद्म, महापद्म, कुमुद,
महाकुमुद, नलिन, महानलिन, पोंडरीक, महापोंडरीक, शुक्ल, महाशुक्ल, सिंह, सिंहावकान्त, सिंहवीत और भावित विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरोपम की कही गई है।
१८. काल, सुकाल, महाकाल, अंजन, रिष्ट, शाल, समान, द्रुम,
महाद्रुम, विशाल, सुशाल, पद्म, पद्मगुल्म, कुमुद, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुंडरीक, पुंडरीकगुल्म और सहस्रारावतंकसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह सागरोपम की कही गई है।
१९. आनत, प्राणत, नत, विनत, घन, शुषिर, इन्द्र, इन्द्रावकान्त
और इन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति उन्नीस सागरोपम की कही गई है।