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________________ स्थिति अध्ययन उ. गोयमा ! जहण्णेण वीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण एक्कवीसं सागरोवमाई ।' प. अपरणत्तयाणं भंते! आरणे कप्पे देवाणं केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं । प. पज्जत्तयाणं भंते! आरणे कचे देवाणं केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण एक्कवी सागरोवमाई अंतोमहत्तूणाई । - पण्ण. प. ४, सु. ४२५ ११३. अच्चुय कप्पे देवाणं टिई प. अच्चुए कपे णं भंते! देवाण केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण एक्कवी सागरोवमाई, उक्कोसेण बावीसं सागरोवमाई २ । प. अपज्जतवाणं भंते! अच्चुए कप्पे देवाणं केवइयं काल ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं । " प. पुज्जत्तयाणं भंते! अच्चुए कप्पे देवाण केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण एक्कवीस सागरोबमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण बावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई । -पण्ण. प. ४ सु. ४२६ ११४. आरण-अच्चुय देविंदस्स परिसागय देवाणं ठिईप. आरण अच्चुयस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णोअभितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पणता ? मझिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवहयं काल ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! आरण अच्चुयरस णं देविंदस्स देवरण्णोअतिरियाए परिसाए देवाणं एक्वीस सागरोवमाई सत्तय पलिओ माई ठिई पण्णत्ता । मझिमिया परिसाए देवाण एक्कवीस सागरोवमाई छप्पल ओवमाई ठिई पंण्णत्ता। बाहिरियाए परिसाए देवाणं एक्कवीस सागरोचमाई पंचय पलिओबनाई दिई पण्णत्ता । - जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १९९ ( उ ) १. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/७ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. २३२ (ग) सम. सम. २० सु. १३, (ज.) (घ) सम. सम. २१, सु. ९ ( उ ) उ. गौतम ! जघन्य बीस सागरोपम की, उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम की। प्र. भंते! आरणकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भंते! आरणकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? ३३९ उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम बीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम इक्कीस सागरोपम की। ११३. अच्युत कल्प में देवों की स्थिति प्र. भंते! अच्युतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम जघन्य इक्कीस सागरोपम की. उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की। प्र. भंते! अच्युतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भंते! अच्युतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम इक्कीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की। ११४. आरण- अच्युत देवेन्द्र के परिषदागत देवों की स्थितिप्र. भंते! आरण अच्युत देवेन्द्र देवराज की - आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम आरण-अच्युत देवेन्द्र देवराज की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम सहित इक्कीस सागरोपम की कही गई है। मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति छह पल्योपम सहित इक्कीस सागरोपम की कही गई है। बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम सहित इक्कीस सागरोपम की कही गई है। २. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/७ (ख) उत्त. अ. ३६, गा. २३३ (ग) उव. पय. २, सु. १५८, १५९, १६२ (घ) सम. सम. २१, सु. १0 (ज.) (ङ) सम. सम. २२, सु. ९० (उ.)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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