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________________ ( ३४० । ११५. गेवेज्जगदेवाणं ठिई प. १. हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण बावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण तेवीसं सागरोवमाइं। प. हेठिमहेठिमगेवेज्जग अपज्जत्तयदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। द्रव्यानुयोग-(१) ११५. ग्रैवेयक देवों की स्थिति प्र. १.भंते ! अधस्तन-अधस्तन (सबसे निचले ग्रैवेयकत्रिक में सबसे नीचे वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य बाईस सागरोपम की, उत्कृष्ट तेईस सागरोपम की। प्र. भंते ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक के अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भंते ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवयक के पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की। प. हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण बावीसं सागरोवमाइं अंतो मुहुत्तूणाई, उक्कोसेण तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई। प. २. हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण तेवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण चउवीसं सागरोवमाई। प. हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेईस सागरोपम की। प्र. २. भंते ! अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य तेईस सागरोपम की, उत्कृष्ट चौवीस सागरोपम की। प्र. भंते ! अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भंते ! अधस्तन-मध्यम ग्रैवयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तेईस सागरोपम की, प. हेट्टिममज्झिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं काले ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण चउवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई। प. ३. हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण चउवीसं सागरोवमाई, ___उक्कोसेण पणवीसं सागरोवमाइं३। प. हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेणं वि अंतोमुहत्तं। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम चौबीस सागरोपम की। प्र.३.भंते ! अधस्तन उपरितन (सबसे नीचे के त्रिक में ऊपर वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य चौबीस सागरोपम की, उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की। प्र. भंते ! अधस्तन उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भंते ! अधस्तन उपरितन ग्रैवयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ, गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौबीस सागरोपम की, प. हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं काले ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण चउवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण पणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। प. ४. मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जग देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की। . प्र. ४.भंते ! मध्यम-अधस्तन (बीच के त्रिक में सबसे निचले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? १. (क) उत्त.अ.३६,गा.२३४ (ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२२ सु.१०(ज.) (घ) सम.सम.२३ सु.१० (उ.) २. (क) उत्त. अ.३६, गा. २३५ (ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२३,सु.९ (ज.) (घ) सम.सम.२४,सु.१२ (उ.) ३. (क) उत्त.अ.३६,गा.२३६ (ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२४,सु.११(ज.) (घ) सम.सम.२५,१.१५ (उ.)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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