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प. अपज्जत्तयाणं भंते ! आणए कप्पे देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भंते ! आनतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य की अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त
की। प्र. भंते ! आनतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की।
प. पज्जत्तयाणं भंते ! आणए कप्पे देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अट्ठारस सागरोवमाई
अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेण एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई।
-पण्ण. प.४, सु.४२३ ११०. पाणए कप्पे देवाणं ठिई
प. पाणए कप्पे णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण एगूणवीसं सागरोवमाई,
उक्कोसेण वीसं सागरोवमाइं। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! पाणए कप्पे देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
११०. प्राणत कल्प में देवों की स्थिति
प्र. भंते ! प्राणतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य उन्नीस सागरोपम की,
उत्कृष्ट बीस सागरोपम की। प्र. भंते ! प्राणतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त
की। प्र. भंते ! प्राणतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बीस सागरोपम की।
१११. आनत-प्राणत देवेन्द्र की परिषदा के देवों की स्थितिप्र. भंते ! आनत-प्राणत देवेन्द्र देवराज की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही
मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही
प. पज्जत्तयाणं भंते ! पाणए कप्पे देवाणं केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण एगूणवीसं सागरोवमाई
अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेण वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
-पण्ण.प.४,सु.४२४ १११. आणय-पाणय देविंदस्स परिसागय देवाणं ठिईप. आणय-पाणयस्सविणं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा! आणय-पाणयस्स णं देविंदस्स देवरण्णो
अभिंतरियाए परिसाए देवाणं एगणवीसं सागरोवमाई पंच य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। मज्झिमियाए परिसाए देवाणं एगणवीस सागरोवमाई चत्तारिय पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। बाहिरियाए परिसाए देवाणं एगूणवीसं सागरोवमाई तिण्णि य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।
-जीवा. पडि. ३, उ.२, सु. १९९(ई) ११२. आरणे कप्पे देवाणं ठिईप. आरणे कप्पे णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? १. (क) अणु.कालदारे सु.३९१/७
(ख) उत्त.अ.३६,गा.२३०
उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज आणत-प्राणत की
आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम सहित . उन्नीस सागरोपम की कही गई है। मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति चार पल्योपम सहित उन्नीस सागरोपम की कही गई है। बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति तीन पल्योपम सहित . उन्नीस सागरोपम की कही गई है।
११२. आरण कल्प में देवों की स्थिति
प्र. भंते ! आरणकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही
गई है?
(ग) सम.सम.१९ सु.१०,(ज.) (घ) सम.सम.२०,सु.१२(उ.)