SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थिति अध्ययन प. गहविमाणे णं भंते! अपज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. गहविमाणे णं भंते! पज्जत्तियाण देवीण केवइयं कालं टिर्ड पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण चठभागपलिओदमं अंतोमुहत्तूर्ण, उक्कोसेण अद्धपलिओचम अंतोमहत्तूणं । - पण्ण. प. ४, सु. ४०१-४०२ ७६. णक्खत्तविमाणवासी देव देवीण ठिई प. णक्खत्तविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण चउभागपलिओदमं, उक्कोसेण अद्धपलिओवमं' । प. णक्खत्तविमाणे णं भंते! अपज्जत्तयाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त । प. णक्खत्तविमाणे णं भंते ! पज्जत्तयाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण चउभागपलिओदमं अंतोमुहत्तूर्ण, उक्कोसेण अद्धपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं । प णक्खत्तविमाणे णं भंते! देवीणं केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणणेण चउभागपलिओयमं " उक्कोसेण साइरेगं चउभागपलिओवमं । प. णक्खत्तविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोवमा ! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । " प. णक्खत्तविमाणे णं भंते ! पज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेण साइरेगं चउभागपलिओवमं अंतोमुहूत्तूणं । पण्ण. प. ४, सु. ४०३-४०४ ७७. ताराविमाणवासी देव-देवीणं टिई प. ताराविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं काल टिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेण चउभागपलिओवमं३ । १. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/५ (ख) जंबू, वक्ष. ७, सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (घ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ ३२५ प्र. भन्ते ! ग्रहविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । भन्ते ! ग्रहविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? प्र. उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अर्द्धपल्योपम की । ७६. नक्षत्र विमानवासी देव देवियों की स्थिति प्र. भन्ते ! नक्षत्र विमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपण के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट अर्धपल्योपम की। प्र. भन्ते ! नक्षत्र विमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. प्र. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । भन्ते ! नक्षत्र विमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम अर्धपल्योपग की। प्र. भन्ते ! नक्षत्र विमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट कुछ अधिक चतुर्भ भाग पल्योपम की। प्र. भन्ते ! नक्षत्र विमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भन्ते ! नक्षत्र विमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई भाग पल्योपम की। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग से कुछ अधिक की। ७७. ताराविमानवासी देव-देवियों की स्थिति प्र. भन्ते ताराविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की, उत्कृष्ट चौथाई भाग पत्योपम की २. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/५ (ख) जंबू. वक्ष. ७, सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) (घ) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (ङ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ ३. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/६ (ख) जंबू. वक्ष. ७, सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (घ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy