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________________ ३२६ प. ताराविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तयाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. ताराविमाणे णं भंते ! पज्जत्तयाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेण चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं। प. ताराविमाणे णं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेण साइरेगं अट्ठभागपलिओवमं । प. ताराविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. ताराविमाणे णं भंते ! पज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहत्तूणं, उक्कोसेण साइरेगं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुत्तूणं। __-पण्ण. प.४, सु. ४०५-४०६ ७८. ओहेण वेमाणिय देवाणं ठिई प. वेमाणियाणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवम, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमं अंतोमुहत्तूणं, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, -पण्ण.प.४, सु. ४०७ ७९. ओहेण वेमाणिय देवीणं ठिई प. वेमाणिणीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! ताराविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! ताराविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की, ' उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई भाग पल्योपम की। प्र. भन्ते ! ताराविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की, उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक की। प्र. भन्ते ! ताराविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? , उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! ताराविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक की। ७८. सामान्यतः वैमानिक देवों की स्थिति प्र. भन्ते ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक पल्योपम की, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की कही - उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की। उ, गोयमा !जहण्णेण पलिओवम, उक्कोसेण पणपण्णं पलिओवमाई। प. अपज्जत्तियाणं भंते ! वेमाणिणीणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। ७९. सामान्यतः वैमानिक देवियों की स्थितिप्र. भन्ते ! वैमानिक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक पल्योपम की, - उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त वैमानिक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। १. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/६ (ख) जंबू. वक्ष.७,सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) (घ) जीवा. पडि. ३ सु. १९७ (ङ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ २. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/१ (ख) विया. स. १, उ. १, सु. ६/२४ ३. (क) अणु. कालदारे सु. ३९१/१ (ख) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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