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________________ ३२४ उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. सूरविमाणे णं भंते! पणत्तयाणं देवानं केवहयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणणेण चउभागपलिओदमं अंतोमुहुत्तूर्ण, उक्कोसेण पलिओयमं वाससहस्समव्यहिवं अंतोमुहुत्तूर्णं । प. सूरविमाणे णं भंते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण चठभागपलि ओवम, उक्कोसेण अद्धपलिओयमं पंचहिं वाससएहिं अमहिय' । प. सूरविमाणे णं भंते ! अपज्जत्तियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. सूरविमाणे णं भंते! पन्जतियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणणेण चउभागपलि ओवमं अंतोमुहुत्तूर्ण, उक्कोसेण अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं अंतोमुहत्तूर्ण - पण्ण. प. ४, सु. ३९९-४०० ७४. जोइसिंद सूरस्स परिसागय देव-देवीणं ठिईजोइसिंदस्स जोइसरण्णो सूरस्स अब्धिंतराइ परिसाए देवाण देवीण य ठिई जहा चंदस्स भाणियव्वा । - जीवा. पडि. ३, उ. ३, सु. १२२ ७५. गहविमाणवासी देव-देवीण टिई प. गहविमाणे णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण चउभागपलिओयमं उक्कोसेण पलिओवमं । प. गहविमाणे णं भंते! अपन्नत्तयाणं देवाणं केवइयं काल ठिर्ड पणता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । प. गहविमाणे णं भंते! पज्जत्तयाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहणेण चउभागपलिओवमं अंतोमुहूत्तूर्णं, उक्कोण पलिओदमं अंतोमुहुत्तूणं । प. गहविमाणे णं भंते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! जहण्णेण चउभागपलि ओवमं, उक्कोसेण अद्धपलिओवर्म । १. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/३ (ख) जंबू. वक्ष. ७, सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) (घ) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (ङ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ द्रव्यानुयोग - (१) उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भन्ते ! सूर्यविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम जपन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्पोपण के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की। प्र. भन्ते सूर्यविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट पांच सौ वर्ष अधिक अर्थपत्योपम की प्र. भन्ते ! सूर्यधमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? 2 उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहर्त की उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की प्र. भन्ते सूर्यविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काह की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पाँच सौ वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की। ७४. ज्योतिष्केन्द्र सूर्य की परिषदागत देव देवियों की स्थिति ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की आभ्यंतरादि परिषदा की देव और देवियों की स्थिति चन्द्र की परिषद के देव देवियों की स्थिति के समान जाननी चाहिए। ७५. ग्रहविमानवासी देव-देवियों की स्थिति प्र. भन्ते ! ग्रहविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चौथाई भाग की, उत्कृष्ट एक पल्योपम की। प्र. भन्ते ! ग्रहविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की । प्र. भन्ते ! ग्रहविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थ भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त कम एक पत्योपम की। प्र. भन्ते ग्रहविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य पल्योपम के चौथाई भाग की, उत्कृष्ट अर्धपल्योपम की। २. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/३ (ख) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) ३. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/४ (ख) जंबू. वक्ष ७, सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (घ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८ ४. (क) अणु. कालदारे सु. ३९०/४ (ख) जंबू, वक्ष. ७, सु. २०५ (ग) जीवा. पडि. २, सु. ४७ (३) (घ) जीवा. पडि. ३, सु. १९७ (ङ) सूरिय. पा. १८, सु. ९८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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